भारतवर्ष में यह विषय रखना जँचता नहीं है। साधारण विचार से ‘विश्व शान्ति के लिए धर्म-पालन करने की प्रयोजनीयता’ का मतलब है कि क्या अधर्म की भी विश्व शांति के लिए जरूरत हो सकती है? अभी लोगों के अन्दर ऐसी भावना आ गई है कि धर्म से शांति नहीं होगी। शायद, इसलिए इस प्रकार का विषय रखा गया है। सोचिये यदि धर्म से शान्ति नहीं होगी तो क्या अधर्म से शान्ति होगी?
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