श्री लक्ष्मीपति तीर्थ

श्री लक्ष्मीपति तीर्थ का प्रणाम मंत्र

“सुखतीर्थ मताबदिन्दु जातम् लक्ष्मी मनोहरात
सर्वाभिस्ता प्रदं नृणां लक्ष्मीपति गुरुम भजे”

श्री लक्ष्मीपति तीर्थ का परिचय:

लक्ष्मीपति तीर्थ माधवाचार्य संप्रदाय की ब्रह्म-माधव शाखा के एक प्रतिष्ठित भिक्षु थे। वे व्यासतीर्थ के शिष्य और माधवेन्द्र पुरी के गुरु थे।

श्रीपाद लक्ष्मीपति तीर्थ का अर्थ:

लक्ष्मीपति तीर्थ एक बार पूरी रात एकांत स्थान पर बैठे रहे और भगवान बलराम की महिमा का जाप करते रहे। उनकी भक्ति इतनी तीव्र थी कि वे कभी-कभी चिल्लाते और पुकारते, “हे बलदेव, मुझ पर दया करो। मैं कितना गिरा हुआ और व्यथित हूँ!” भगवान को देखने की तीव्र इच्छा के कारण उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। कभी-कभी वे अपना धैर्य खो देते, ज़मीन पर गिर जाते और खुद को भूल जाते। उस दिन वे रो रहे थे और धीरे-धीरे सो गए।

लक्ष्मीपति तीर्थ को भगवान बलदेव का निर्देश:

तब भगवान नित्यानंद अपने शिशुवत आकर्षण के साथ भगवान बलराम के रूप में लक्ष्मीपति तीर्थ के स्वप्न में प्रकट हुए। उन्होंने उन्हें आदेश दिया, “एक भटकता हुआ ब्राह्मण अवधूत के रूप में शहर में आया है। वह तुम्हारे पास आएगा। तुम उसे वैष्णव मंत्र में दीक्षित करोगे और उसे अपना शिष्य बनाओगे।” तब भगवान बलदेव ने लक्ष्मीपति तीर्थ के दाहिने कान में एक मंत्र का जाप किया। वह तुरंत जाग गया। कुछ समय बाद लक्ष्मीपति ने उसे देखा। वह उस ब्राह्मण के सुंदर शरीर, चंद्रमा के समान चेहरे और पलक झपकने वाली आँखों से अपनी आँखें नहीं हटा सके। उनके शब्दों से लक्ष्मीपति की आँखों में आँसू भर आए। वह ब्राह्मण भिक्षु स्वयं नित्यानंद प्रभु थे। लक्ष्मीपति तीर्थ ने उसी दिन भगवान बलदेव के आदेश का पालन किया।

“नित्यानंद प्रभुम् वंदे श्रीमद् लक्ष्मीपति प्रियं
श्री माधव-संप्रदाय वर्धनम् भक्त वत्सलम्”

अनुवाद: भगवान नित्यानंद को प्रणाम है जो लक्ष्मीपति तीर्थ के प्रिय शिष्य हैं और जिन्होंने माधव वंश को आगे बढ़ाया। वे अपने भक्तों पर अपना हार्दिक प्रेम बरसाते हैं।

लक्ष्मीपति तीर्थ के प्रति भगवान बलदेव का स्नेह:

भगवान नित्यानंद की संगति में लक्ष्मीपति तीर्थ को जो दिव्य आनंद मिला, वह अवर्णनीय था। जब नित्यानंद प्रभु आगे बढ़े, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। जैसे ही वे एक क्षण के लिए सो गए, भगवान उनके स्वप्न में प्रकट हुए। उनका रंग गोरा था और उन्होंने नीली धोती पहन रखी थी। यह देखकर लक्ष्मीपति तीर्थ आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने अपने प्रेम भरे आँसुओं से भगवान के चरण धोए। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की:- “आपने निश्चित रूप से मुझे मूर्ख बना दिया है और इस पतित को और भी दयनीय स्थिति में डाल दिया है। कृपया मुझ पर अपनी दया दिखाएँ। मैंने आपके चरण कमलों की शरण ली है।”

लक्ष्मीपति तीर्थ का लुप्त होना:

भगवान नित्यानंद जो स्वयं भगवान बलराम हैं, ने लक्ष्मीपति तीर्थ की सभी इच्छाएँ पूरी कीं। जब लक्ष्मीपति तीर्थ जागे और भगवान नित्यानंद के लिए विलाप करने लगे, तो रात बीत गई और सुबह हो गई। उस दिन से

लक्ष्मीपति तीर्थ के व्यवहार में परिवर्तन आ गया। तब से उन्होंने कभी एक शब्द भी नहीं बोला। कुछ समय बाद लक्ष्मीपति तीर्थ ने इस भौतिक संसार को छोड़ दिया। भगवान और उनके भक्तों की दिव्य लीलाओं को कौन समझ सकता है? उनकी भक्ति से आकर्षित होकर भगवान स्वयं उनके सामने प्रकट हुए। कुछ विद्वान लक्ष्मीपति तीर्थ को नित्यानंद प्रभु का गुरु मानते हैं।