मैंने आपके लिए ग्रन्थ आदि खरीदकर महा-अनर्थ कर दिया है। धन के बदले क्या ग्रन्थआदि (अप्राकृत परब्रह्म का शाब्दिक अवतार) संग्रह किये जा सकते हैं? प्रकृत (जागतिक) धन के दुवारा क्या अप्राकृत “अमूल्य सम्पद” का संग्रह किया जा सकता है? “अप्राकृत वास्तु नहे प्रकृत गोचर” (अप्राकृत वास्तु का दर्शन कभी जड़ नेत्रों से नहीं किया जा सकता है)-यही इस सम्बन्ध में श्रेष्ठ प्रमाण है। काशिम-बाज़ार के महाराज ने जब नवद्वीप में एकखंड भूमि संग्रह करने का प्रयास किया था तो श्रील गौरकिशोरदास बाबा जी महाराज ने उस राजा पर शासन करते हुए कहा था-“महाराज के पास कितनी धन-सम्पति है कि, वे चिन्मय नवद्वीप धाम का एक रेत-कण, जोकि, चिंतामणि-सवरूप है, उसका मूल्य चुका सकें?