पुरुषोत्तम तीर्थ

पुरूषोत्तम तीर्थ प्रणाम मंत्र 

पुरूषोत्तम पदवज हृदय शास्त्र कोविडः
पुरूषोत्तम तीर्थख्यो गुरुर भूअद् अभिष्टदः

श्री पुरुषोत्तम तीर्थ के बारे में:

श्रीपाद पुरुषोत्तम तीर्थ माधवाचार्य की वंशावली में 10वें वंशज और आचार्य थे। उन्होंने 1400 से 1416 ई. तक आचार्य का पद संभाला। उनका पूर्व नाम श्रीनिवास आचार्य था। वे अपने गुरु जयधर्म तीर्थ के सबसे वरिष्ठ शिष्यों में से एक थे।

दक्षिण भारत की यात्रा:

वे अपने गुरुदेव के आदेशानुसार दक्षिण दिशा में चन्नपट्टनम में श्री रामप्रमेय स्वामी के प्राचीन मंदिर में गए। इस मंदिर की स्थापना प्राचीन ऋषियों ने की थी। उस समय से इस मंदिर में प्रतिदिन पूजा-अर्चना होती आ रही है। इस स्थान को ज्ञानमंडप के नाम से भी जाना जाता है। श्री पुरुषोत्तम तीर्थ इस स्थान पर आए और कण्व नदी के तट पर एकांत स्थान पर भगवान नृसिंहदेव का मंदिर स्थापित किया । प्राचीन काल में ऋषि कण्व का आश्रम इसी स्थान पर स्थित था। यहीं पर उन्होंने तपस्या की। इस स्थान पर वे नृसिंहदेव की पूजा करते रहे और अपनी भक्ति सेवाएं करते रहे।

श्री पुरुषोत्तम तीर्थ की दैनिक दिनचर्या:

श्री पुरुषोत्तम तीर्थ कभी भी भिक्षा मांगने के लिए इलाके में नहीं जाते थे। बल्कि, वे प्रतिदिन भगवान नृसिंहदेव की पूजा करके एक गुफा में ध्यान करते थे। वे माधवाचार्य के ब्रह्मसूत्र की व्याख्या का अभ्यास करते थे। सुबह-सुबह वे भगवान की पूजा करने आते थे। इस गुफा को पुरुषोत्तम गुफा के नाम से जाना जाता है। यही उनकी दिनचर्या थी।

पुरुषोत्तम तीर्थ की बुद्धि:

श्री पुरुषोत्तम तीर्थ को शास्त्रों का बहुत ज्ञान था। इसीलिए उन्हें “शास्त्र कोविद” कहा जाता था। उस समय शास्त्र ज्ञान में उनके बराबर कोई नहीं था।

पुरुषोत्तम तीर्थ का तिरोभाव:

पुरुषोत्तम तीर्थ ने अपने शिष्य नरसिंह को दीक्षा दी और उसका नाम ब्रह्मण्य तीर्थ रखा। उन्होंने उसे संप्रदाय का आचार्य नियुक्त किया और निरंतर तपस्या करने के लिए गुफा में चले गए। वहाँ वे चमत्कारिक ढंग से गायब हो गए। इस कारण से उनकी कोई समाधि नहीं थी।