एक भक्त के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रील गुरुदेव उन्हें, अपने सर्वोत्तम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सहनशीलता, धैर्य व प्रीति के साथ हरिनाम रूपी सकारात्मक साधन करने की शिक्षा दी है। वे हमें, कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए व इस अनित्य जगत में अपने मन को शांत व स्थिर रखने के लिए, श्रीमन् महाप्रभु व हमारे गुरुवर्गों की शिक्षाओं को स्मरण करके, प्रह्लाद महाराज व अम्बरीष महाराज के जीवन-चरित्र से भजन में उत्साह व बल प्राप्त करने के लिए भी शिक्षा दे रहे हैं। वे इस पत्र का उपसंहार करते हुए, भक्त से, समस्या के समाधान के विषय में सकारात्मक उत्तर के लिए आशा करते हैं।
प्रश्न : अपनी धर्मपत्नी से सम्बन्ध विच्छेद करने के इच्छुक भक्त को उपलक्ष्य करके दिए गए श्रील गुरुदेव के दिव्य उपदेश
श्रील गुरुदेव : हमें सदैव स्मरण रखना होगा कि हम श्रीचैतन्य महाप्रभु की विचारधारा से हैं। चैतन्य महाप्रभु ने समस्त मानव जाति यहाँ तक कि अन्य प्राणियों को भी हमारे परम आराध्यतम भगवान श्रीकृष्ण से सम्बन्ध-युक्त जानकर सभी से प्रेम करने की शिक्षा दी है। श्रीचैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं के अनुगत होते हुए़ भी, यदि हम अपने ही बन्धु-बांधवों से प्रीति न कर सके, तो किसी अन्य से प्रीति कैसे करेंगे?
श्रीचैतन्य महाप्रभु ने हमें, तृण से भी अधिक दीन, वृक्ष से भी अधिक सहनशील, अमानी (अपने मान की इच्छा नहीं रखनेवाला) व मानद (सभी को मान देने की प्रवृत्तियुक्त); इन चार गुणों से गुणी होकर हरिनाम करने की शिक्षा दी है।
यहाँ के भक्तों में आपके परिवार व आपके विनम्र व्यवहार के प्रति विशेष आदर है। इस आदर को किसी भी प्रकार से बनाये रखना आवश्यक है। जागतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए पारमार्थिक स्वार्थ का परित्याग उचित नहीं है। आप स्वयं, मेरा परिचय देते हुए कहा करते थे कि यह बहुमूल्यवान मनुष्य जीवन केवल श्रीकृष्ण-सेवा के लिए है; आहार, निद्रा, भय व मैथुन के लिए नहीं। पारिवारिक सम्बन्धों में परस्पर प्रीति के स्थान पर कभी-कभी परस्पर असंतुष्ट मनोभाव हो सकता है किन्तु प्रायः ये स्थिति स्थायी नहीं रहती।
हमारे परम आराध्यतम गुरुदेव हमें प्रह्लाद महाराज की शिक्षा को स्मरण करने के लिए उपदेश देते थे, ‘यद्वदन्ति यदिच्छन्ति चानुमोदेत निर्मम:।’ अर्थात यदि परिवार में कोई आपकी इच्छा के विरुद्ध कुछ कहता हैं या करता हैं, तो कभी-कभी उसका अनासक्त भाव से अनुमोदन करना पड़ता है। उस स्थिति में, हम उस अनुमोदन के उत्तरदायी नहीं होते हैं। शांतिपूर्ण पारवारिक जीवन के लिए यह आवश्यक है। हमें गंभीरता से विचार करना होगा कि किस प्रकार प्रह्लाद महाराज अत्यंत प्रतिकूल परिस्थिति में भी शांत व स्थिर रह पाएँ। वे कभी असंतुलित व अशांत नहीं हुए। हमें प्रत्येक परिस्थिति में सामंजस्य स्थापित करना होगा; परिस्थिति को हम अपने अनुरुप नहीं बना सकते। भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु व हमारे गुरुवर्गों ने पुनः-पुनः हमें प्रह्लाद महाराज एवं अम्बरीष महाराज के पावन चरित्र अध्ययन करने की शिक्षा दी है। मेरा अनुमान है कि मैंने जो कुछ आपसे सुना है वह केवल आपके तात्कालिक भाव हैं। मैं इस विषय में आपके शीघ्रातिशीघ्र उत्तर की व्याकुलता से प्रतीक्षा करूंगा।
कृपया प्रतिदिन चार बार नरसिंह मंत्र का पाठ अवश्य करें। श्रीगुरु गौरांग आप पर कृपा करें।
आप सभी को मेरा स्नेह।