यह पत्र गुरुदेव ने एक ऐसे गृहस्थ-भक्त को लिखा है जिनके परिवार जन, जो भजन मार्ग में नहीं हैं, उन्हें कुलदेवी की पूजा करने के लिए बाध्य कर रहे हैं। गुरुदेव उन्हें अनन्य कृष्ण-भक्ति में दृढ़ रहते हुए अपने परिवार जनों के दायित्व को निभाने की शिक्षा देते हैं।
परिवारिक जनों में आसक्त, गृहस्थ भक्त प्रायः भजन में बाधक प्रलोभनों से मोहित हो जाते हैं। ऐसे परिवार जन जिन्होंने शुद्ध भक्ति धारा का आश्रय नहीं लिया है, यदि कुलदेवी की पूजा पुनःस्थापन करने के लिए आग्रह करते हैं, तो उन्हें ऐसा करने दें; उनका विरोध करना बुद्धिमानी नहीं है। हमें किन्तु अनन्य भक्ति में दृढ़ रहना है।
मुझे ज्ञात हुआ है कि आप हमारे साथ अगरतला यात्रा कर सकते हैं। गृहस्थ होने के कारण अब आप स्वतन्त्र नहीं हैं; गृहस्थ-जीवन के दायित्व व कर्तव्य भी हैं। आपकी योजना में यदि कोई बाधा भी आती है तो आपको निराश नहीं होना है।
मैं यहाँ पर श्रीचैतन्य वाणी मासिक पत्रिका के लिए निबन्ध लिखने व संशोधन प्रक्रिया में अति व्यस्त हूँ, क्योंकि मैं एक लम्बे समय के लिए कलकत्ता से दूर रहूँगा।
हम सभी यहाँ पर ठीक हैं। आप सभी को मेरा स्नेह। सर्व-कृपामयी श्री गुरु गौरांग और राधा-कृष्ण आप पर कृपा करें।