अध्याय 3: समस्त अवतारों के स्रोत : कृष्ण

सूत उवाच
जगृहे पौरुषं रूपं भगवान्महदादिभि: ।
सम्भूतं षोडशकलमादौ लोकसिसृक्षया ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत ने कहा; जगृहे—स्वीकार किया; पौरुषम्—पुरुष अवतार रूप में पूर्णांश; रूपम्—रूप; भगवान्— भगवान्; महत्-आदिभि:—भौतिक जगत के अवयवों सहित; सम्भूतम्—इस तरह उत्पन्न; षोडश-कलम्—सोलह मुख्य सिद्धान्त; आदौ—प्रारम्भ में; लोक—ब्रह्माण्ड; सिसृक्षया—उत्पन्न करने के विचार से ।

सूतजी ने कहा : सृष्टि के प्रारम्भ में, भगवान् ने सर्वप्रथम विराट पुरुष अवतार के रूप में अपना विस्तार किया और भौतिक सृजन के लिए सारी सामग्री प्रकट की। इस प्रकार सर्वप्रथम भौतिक क्रिया के सोलह तत्त्व उत्पन्न हुए। यह सब भौतिक ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के लिए किया गया।