साक्षाद्धरित्वेन समस्त शास्त्रैः
उक्तस्तथा भावयत एव सद्भिः।
किन्तु प्रभोर्यः प्रिय एव तस्य
वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥
वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः॥
संकर्षणः कारण-तोय-शायी
गर्भोदशायी च पयोऽब्धिशायी।
शेषश्च यस्यांश-कला:
स नित्यानंदाख्य-रामः शरणं ममास्तु॥
नमस्ते तु हलग्राम! नमस्ते मुषलायुध!।
नमस्ते रेवतीकान्त! नमस्ते भक्तवत्सल!।।
नमस्ते बलिनां श्रेष्ठ! नमस्ते धरणीधर!।
प्रलम्बारे! नमस्ते तु त्राहि मां कृष्ण-पूर्वज!।।
नमो महा-वदान्याय, कृष्णप्रेमप्रदाय ते।
कृष्णाय कृष्ण चैतन्य, नाम्ने गोर-त्विषे नमः॥
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिच्छं
कटितटे दुकूलं नेत्रान्ते सहचर-कटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्-वृन्दावन-वसति-लीला-परिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु मे॥
तप्त-काञ्चन गौरांगी! राधे! वृंदावनेश्वरी!।
वृषभानुसुते! देवी! प्रणमामि हरिप्रिये!॥
हे कृष्ण! करुणासिन्धो! दीनबन्धो! जगत्पते!
गोपेश! गोपिकाकान्त! राधाकान्त! नमोस्तु ते॥
वन्दे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णश:।
यासां हरिकथोद्गीतं पुनाति भुवनत्रयम्॥
भक्त्या विहीना अपराधलक्षैः क्षिप्ताश्च कामादि तरंगमध्ये।
कृपामयि त्वां शरणं प्रपन्ना, वृन्दे! नमस्ते चरणारविन्दम्।।
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौर भक्त वृन्द
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
सबसे पहले मैं पतितपावन
परम आराध्यतम
श्रीभगवान के अभिन्न प्रकाश विग्रह
श्रीभगवत् ज्ञान प्रदाता
श्रीभगवान की सेवा में अधिकार प्रदानकारी
परम करुणामय श्रील गुरुदेव के श्रीपादपद्म में
अनंत कोटि साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हुए
उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ
पूजनीय वैष्णववृन्द के श्रीचरण में प्रणत होकर
उनकी अहैतुकी कृपा प्रार्थना करता हूँ
भगवत् कथा श्रवण पिपासु
दामोदर व्रत पालनकारी भक्त वृन्दों को
मैं यथा-योग्य अभिवादन करता हूँ
सब की प्रसन्नता प्रार्थना करता हूँ
श्रीगजेन्द्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात् परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्॥
य: स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद् विभातं क्व च तत् तिरोहितम्।
अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्पर:॥
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु।
तमस्तदासीद् गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभु:॥
न यस्य देवा ऋषय: पदं विदु-
र्जन्तु: पुन: कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमण: स मावतु॥
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं
विमुक्तसङ्गा मुनय: सुसाधव:।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतात्मभूता: सुहृद: स मे गति:॥
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा
न नामरूपे गुणदोष एव वा।
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय य:
स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति॥
तस्मै नम: परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्यकर्मणे॥
नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि॥
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता।
नम: कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे॥
नम: शान्ताय घोराय गूढ़ाय गुणधर्मिणे।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च॥
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे।
पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नम:॥
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नम:॥
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय
निष्कारणायाद्भुतकारणाय।
सर्वागमाम्नायमहार्णवाय
नमोऽपवर्गाय परायणाय॥
गुणारणिच्छन्नचिदुष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि॥
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत-
प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते॥
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै-
र्दुष्प्रापणाय गुणसङ्गविवर्जिताय।
मुक्तात्मभि: स्वहृदये परिभाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय॥
यह गजेन्द्र स्तव
भागवत जहाँ पर कृष्ण प्रेम
देने के लिए भागवत कृष्ण प्रेम, कृष्ण की प्रसन्नता के लिए है
गजेन्द्र प्रसंग भी लिख दिया
गजेन्द्र ने भगवान को प्रसन्न किया
लेकिन वही गजेन्द्र का स्तव
जब हम उच्चारण करेंगे, भगवान प्रसन्न होंगे
होंगे यह आशा लेकर
जो भगवद् भक्त जो वचन से भगवान को प्रीति प्रदान करते हैं
उसका उच्चारण में यह आशा है शायद
भगवान प्रिती करे
लेकिन वो भाव तो नहीं है
everyday I am repeating the same prayers
because my condition is very bad
what can be done? outside they see
ohh! you are a sannyasi
but what is my plight I know
any moment..the last day, the last moment may come
body may perish
but up till now
sincerely I cannot
submit myself to Guru
Gurudev,
he is the grace incarnate form of Supreme Lord
if I cannot submit to him
I am ignoring the grace of Supreme Lord
Supreme Lord
came to me as a grace incarnate
by ignoring I do not want grace
what Supreme Lord can do?
direct contact with guru
in which form Krishna came to rescue
the fallen soul like me
there is some defect in sharanagati
it is not sincere sharanagati
hypocrisy for that reason
I am repeating so that my
abominable condition may be rectified, for that purpose
I beg to be excused
you may think you are spoiling your time
by repeating the same
by you are
we cannot know as
Gajendra himself saying
Supreme Lord knows everybody’s heart
He is there as Paramatma, He knows everything
what is inside the heart of the
Gajendra leader of the wild elephants
what is the thinking of the Crocodile
and other jivas
like that
of that reason my condition
Supreme Lord know well
for that reason
my condition, Supreme Lord knows well for that reason, as grace incarnate form,
He tries to rectify me and
last day may come at any moment
and what I have got? Nothing. For that reason
I beg to be excused for my repetition of the
same verses
it may be selfishness though
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै- र्दुष्प्रापणाय गुणसङ्गविवर्जिताय।
मुक्तात्मभि: स्वहृदये परिभाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय॥
यहाँ पर गजेन्द्र
महात्म्य, भगवान का महात्म्य उनके हृदय में
प्रकाशित हो रहा है
भगवान निर्गुण
वो जो महात्म्य वर्णन कर रहा है वो भी निर्गुण, अप्राकृत
भगवान के चरण में सहारा ले रहा है
महात्म्य कीर्तन करके, कोई किसी का,
भगवान का, नाम नहीं लिया
अभी कहते हैं यहाँ पर
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
यह हम लोगों ने कल सुना
अपने को….. शुद्ध भक्त हैं
स्वरुप में शुद्ध भक्त हैं
लेकिन
जानवर बोलकर बुला रहा है, “मैं पशु हूँ, जानवर हूँ”
भगवान के चरणों में सहारा लिया
एक तो बाहर में देखने में ग्राह है
he was attacked by a crocodile
but here crocodile means
crocodile is the horrible
horrible figure of this world
bondage, worldly entanglements
I can be rescued from this by the Supreme Lord
because illusion energy has enveloped me
it belongs to the Supreme Lord, He is the owner of the illusion energy
not any other demigods or any other living beings
there is no other
way to be rescued except Supreme Lord
whose illusory energy has enveloped me because of my
offense I committed
to His Lotus Feet by not serving him
for that reason
mādṛk all, like this all the
living beings in this world, enslaved jivas of this world
who are,
being enveloped by this illusory energy of Him,
are passing through cycles of birth and deaths
too much suffering
that is the crocodile
alligator
in US and Japan they say, alligator crocodile
like a crocodile and muktāya
मुक्ताय बोलता है भगवान को, मुक्ताय
किसलिए?
दुनिया का जो व्यक्ति है
दुनिया के व्यक्ति में बहुत किस्म के भाव रहते हैं
प्रकृति
प्रकृति पारवश्य
प्रकृति के वश, द्वेष हिंसा कितना कुछ
इधर-उधर की बात, मात्सर्य कितना कुछ हैं
आपके अंदर में वो बात कुछ नहीं हैं
इसलिए कहते हैं मुक्ताय.. आपका सहारा लिया
आप मुक्ताय हैं
कोई ऐसे दुनियादारी के व्यक्ति के माफिक
भाव आपके अंदर में है ही नहीं, वे सारी वस्तुओं से आप मुक्त हैं
और आप असीम करुणामय हैं
यहाँ पर, अशेष करुणाकर
आपकी करुणा का कोई शेष (अंत) नहीं है
यह गुरुजी की बात जो
सुनी, पहले वो एक ही किस्म का हुआ है यहाँ
(मैंने) गुरुजी से बोला था कि मेरे
अंदर में बहुत कमियां हैं
बहुत दुबला भाव है
इसलिए मेरे लिए संसार छोड़ना ठीक है कि नहीं
गुरुजी कहते हैं.. गुरुजी का मतलब भगवान
हमें थोडा उत्साह देने के लिए कहते हैं
ठीक है तुम्हारे अंदर में कमी है
लेकिन भगवान के अंदर में कोई कमी नहीं है
वो सर्वशक्तिमान हैं, परम करुणामय हैं
उनका सहारा लेने से करुणा आ जाएगी
करुणा तो, कृपा नीचे की तरफ चलती है
दुनियादारी का घमंड रहने से वहाँ नहीं आती है
सहारा ले लो
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
(गीता 18.66)
गुरुजी ने वहाँ पर यह श्लोक बोलकर मुझे समझाया
यह कृष्ण की ही उक्ति है
भगवान्…..अभी जीवों का जो जीव आबद्ध हो गया और
आबद्ध होकर पुकार रहा है उद्धार के लिए
भगवान सुस्ती(आलस करके) होकर उनको उद्धार नहीं करेंगे, उनको
माया जाल पकड़ के फिर फेंक देगा माया में
ऐसा नहीं है
दुनिया का हो सकता है
कोई चोर डाकू आ गया घर में
फोन करने से भी वो लोग (पुलिस) जानने से भी नहीं आते हैं
उनको मर ने दो बाद में जाएँगे
भगवान ऐसे नहीं हैं
भगवान अशेष करुणामय हैं
वही सब देहि के अंदर में हैं अन्तर्यामी रूप से
ज्ञान स्वरुप हैं
अखंड ज्ञान.. पूर्ण ज्ञान
और अनंत हैं, unlimited
उनकी कृपा सब कुछ अनंत हैं
जो कुछ देखते हैं सब अनंत है
अनंत ब्रह्माण्ड,अनंत वैकुण्ठ, अनंत जीव सब अनंत
कोई सीमा नहीं कर सकता.. अपरिच्छिन्न
जितने कुछ अपराध करे
जब एक दफे उनके चरणों में सहारा ले
भगवान अभय देते हैं
यह रामचन्द्र की उक्ति है
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम॥
यह मेरा व्रत है
जो हो विभीषण की बात छोड़ दो
अगर रावण भी आ जाए
वो भी आकर शरणागत हो जाय.. मा भयी… साथ-साथ में, भगवान् ऐसे हैं
ऐसे दुनियादारी के लोग
मेरा दुश्मन है …भगवान का ऐसा नहीं है
आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु
(आत्मा मनः आत्मजः पुत्रः तदादिषु)
सक्तैः (आसक्तैः)
र्दुष्प्रापणाय (दुःखेनापि प्राप्तमशक्याय)
गुणसङ्गविवर्जिताय
(गुणाः शब्दादयः विषयाः तेषु संगः तेन विवर्जितः तस्मै शब्दादिविषयसंगरहिताय)
मुक्तात्मभिः (देहादिषु अनासक्तचित्तैः जनैः)
स्वहृदये परिभाविताय (चिन्तिताय)
ज्ञानात्मने (ज्ञान-स्वरूपायः)
भगवते ईश्वराय (सर्वनियन्त्रे तुभ्यं) नमः॥
मन, पुत्र, मकान, भृत्य
और विश्वस्त नौकर हैं
उनमें आसक्त व्यक्ति के लिए दुष्प्राप्य हैं
विषयसंगरहित मुक्त आत्मा के पास
उनके हृदय में
शुद्ध अंतकरण में… हृदय में
भगवान्
भगवान् की चिंता प्रकाशित हो सकती है
भगवान् का आविर्भाव हो सकता है
ज्ञान स्वरुप, सर्व नियंता भगवान्
आपको मैं प्रणाम कर रहा हूँ
यहाँ पर कहते हैं,
देखिए र्दुष्प्रापण हैं
जो जड़िय मन है
जड़िय मन कब मिला?
जब भगवान से विमुख हुए
तब स्थूल शरीर मिला
मन, बुद्धि, अहंकार सूक्ष्म शरीर है
सूक्ष्म शरीर में
जो कामना है.. कामना के अनुसार यह शरीर मिला
वही मन जब यह दुनियादारी की वस्तु के लिए कामना करे
दुनियादारी की वस्तु में आसक्त रहे
सारी इन्द्रियों के अंदर में मन होता है, राजा
इसलिए अम्बरीश महाराज पहले ही मन को भगवान् में लगा दिया
उसके अधीन और इन्द्रियाँ हैं और जितना कुछ हैं
मन जब संसार में रहे तब बाकी सब संसार में रहेगा
इसलिए पहले मन को देना चाहिए
लेकिन जो मन
संसार की चिंता, विषय की चिंता में निमग्न है
और साथ-साथ में स्थूल रूप से
पुत्र में आसक्त है
नाशवान वस्तु
मकान में आसक्त है
और धन में आसक्त है
ऐसा की विश्वस्त नौकर में आसक्त है
नाशवान वस्तु में आसक्ति होने से
तो उसी प्रकार गति होती है
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित:॥ (गीता 8.6)
मृत्यु काल में जैसी चिंता होगी वैसी ही गति होगी
हमारे गुरुजी के मुखारविंद से सुना
गुरुजी एकदफे गये थे बांग्लादेश
बांग्लादेश अभी तो बांग्लादेश हो गया
वो पहले भारत के अंदर में था
वहाँ पर हमारे
महाप्रभु के बड़े-बड़े पार्षद,
चट्टग्राम नामक एक स्थान है
पार्षद वहाँ पर प्रकट हुए,
गदाधर पंडीत गोस्वामी
इसलिए सब गौड़ीय वैष्णव वहाँ जाते हैं
वहाँ पर गुरु महाराज जी गए
जाकर एक
एक धनी व्यक्ति जिसकी मृत्यु हो गई उनकी स्त्री है
स्त्री बीमार है
वो वहाँ बिस्तर में सोई है
उनकी इच्छा अनुसार (गुरुजी) उनके घर रहे
अभी गुरुजी कहते हैं… मैं सामने में था देखा
उनकी हालत ऐसी हो गई डॉक्टर ने बोल दिया
तीन दिन से ज्यादा जिन्दा नहीं रहेगी
अभी मैं कोई दवाई देने के लिए इच्छा नहीं करता हूँ
कोई परहेज पाबन्दी भी नहीं है
जो ख़ुशी खिला दीजिए
अब तो दवाई देनी की जरुरत नहीं है
तीन दिन से ज्यादा नहीं रहेंगे
अभी भगवान का नाम सुनो
जब यह बात बोला
उनका लड़का है
वो लड़का सब, तीन लड़का
वो.. उनको चिंता हो गई
ओर धनी व्यक्ति है ना, जितने रिश्तेदार हैं सब घर में आ गए
घर में आ गया, कोई कुछ आशा लेकर आया कोई कुछ ख़ुशी के लिए
सब आ गया जब सुना ऐसा
पोता-पोती सब आ गया
तब वो लड़का माताजी के पास जाके
माताजी!
माताजी को कुछ सुनाई नहीं देता है
अभी उनका शरीर बहुत दिबला हो गया ना
माताजी!
क्या? क्या बोल रहा है?
माताजी!
एक दफे ‘हरे कृष्ण’ बोलो
“मैं इतनी बात नहीं कह सकती हूँ”
इतनी बात नहीं कह सकती हूँ, इसमें ‘हरे कृष्ण’ नहीं बोल सकती वो
“इतनी बात नहीं कह सकती हूँ”
कितने शब्द हुए?
‘हरे कृष्ण’ आया नहीं?
फिर क्या कहते हैं
वो गाँव में एक आदमी था
उसने गन्दे मार्ग से पैसा कमाया
वो अच्छा आदमी नहीं है
उनको याद करने से
कपड़े के साथ गंगा जी में स्नान करना पड़ेगा
उनका नाम बताया, “वो यदु बाबू को बुलाओ”
“यदु बाबू को बुलाओ”
तब उनका जो पोता है वो आ गया
यह क्या है?
अभी इसी हालत में एक गन्दे आदमी को याद कर रही हैं
दादीजी!
आप ‘राधे-कृष्ण’, ‘राधे-गोविन्द’ कहिए
“मैं इतनी बात नहीं कह सकती हूँ”
और दुनियाभर की बात कर रहे हैं
यदु बाबू को बुलाओ
उनकी आखरी इच्छा पूर्ति हो जाए
इसलिए यदु बाबू के पास गया कि हमारी
दादीजी ने आपको याद किया
याद किया? तो जाएँगे
बहुत नामी व्यक्ति है, आ गया
वो एकदम उनके हाथ को ऐसा पकड़ लिया
इतना शरीर दुबला है
मैं जिन्दा नहीं रहूंगी
जिन्दा नहीं रहूंगी
इसलिए मेरी बहुत जायदाद, जमीन, रूपया हैं
यह जो लड़का.. तीन लड़का.. इनकी बुद्धि है ही नहीं
सारा नष्ट कर देंगे
तुम जुबान दो तुम देखोगे
कितनी बात बोल रहे हैं?
गुरुजी सामने में हैं, ये होता है ऐसा
गुरुजी सामने हैं, देखा सुना
तब वो कहते हैं
माताजी!
आपके लड़के लायक हैं, मुझसे भी बुद्धिमान हैं
आपका सारा जितना धन जायदाद जमीन सब ठीक रहेगा
आप एक दफे कहिए ‘हरे कृष्ण’
“मैं इतनी बात नहीं कह सकती हूँ”
आखिर तब वो भगवान का नाम….
किसलिए? पहले से संस्कार ही ख़राब है
यह जब दुनियादारी के
सम्बन्ध में आसक्त रहने से मृत्युकाल में इसकी ही चिंता होगी
मृत्युकाल में जब भगवान की चिंता हो तब सद् गति होती है
इसलिए ऐसे चलना चाहिए
यह नाशवान… सब सम्बन्ध भगवान से हैं
भगवान को भूल गया इसलिए दुनिया में आ गया
आकर आसक्त हो गया.. यह दंड है
भगवान को पुत्र रूप से प्यार नहीं किया
भगवान को प्रभु रूप से प्यार नहीं किया
भगवान को दोस्त रूप से नहीं किया
यहाँ पर यह जगत में नाशवान दोस्त, नाशवान पुत्र, नाशवान सम्बन्ध
पति सब नाशवान मिलेंगे, वही दंड है
इससे जबर दंड और क्या हो सकता है?
इसलिए कहते हैं जो इसमें आसक्त है वो वास्तव में,
भगवान की प्राप्ति उनको होती नहीं है
वो तो भगवान को चाहता ही नहीं
तो कैसे पायेगा? उसकी तो आसक्ति दूसरा तरफ है
दुष्प्राप्य—नहीं मिल सकते
जिसकी इस प्रकार आसक्ति नहीं है,
मुक्त आत्मा है,
यहाँ पर मुक्त जीव दो किस्म के हैं
मुक्त आत्मारामगणेर द्वारा स्वहृदये चिंतित
आत्मारामगण जो है वो तो अपने हृदय में चिंता करते हैं
लेकिन और एक अर्थ भी है
अथवा—मुक्तात्मा बलिते
त्यक्त हईयाछे आत्मा जाहादेर द्वारा
अर्थात् आत्मघाती जनगणेर द्वारा
‘परिभाविताय’—मायिक विग्रहविशिष्ट ऐई परमेश्वर
ऐई ज्ञाने तिरस्कृत हन जिनी, ताँहाके
भगवान का कोई स्वरुप नहीं हो सकता है
स्वरुप होने से तो मायिक हो गया
आत्मा भगवान का नित्य दास होकर भगवान की सेवा नहीं करेगा आखिर में
कोई नहीं रहेगा
जिसका ख़ुशी ध्यान करो
कृष्ण का करो, और कोई देवी का करो
और गणपति का करो
पेड़ का करो अपने लड़का का करो
स्त्री का करो, जिसका जिसका ख़ुशी करो
ध्यान ध्येय ध्याता त्रिपुटी नाश होकर लय हो जाएगा, आखिर में कुछ नहीं रहेगा
तो भगवान तो… इस प्रकार अपनी खुदकुशी
खुदकुशी, स्त्री पति की सेवा करती है
पति कहता है तुम सेवा करती हो ठीक है
लेकिन तुम मतलब छोड़ो
कुछ जेवर प्राप्ति करने के लिए कोई और कुछ प्राप्त करने के लिए कोई दूसरी कामना लेकर सेवा मत करो
दिल से सेवा करो सारी वस्तु मिल जाएगी
लेकिन वो छोडती ही नहीं कामना,
ये चाहिए, वो चाहिए
और पति बार-बार बोलता है
अच्छा ऐसा है
तब रस्सी गले में, लटक के….
फाँसी लगाके… लो लो
मर गया, एकदम वंचित कर दिया
इस प्रकार संसार में आकर कष्ट पाया
अभी जब कहेंगे भगवान् की सेवा करो.. भगवान् की सेवा करो
तो अपनी सत्ता को लय कर दिया
करो अब.. लो सब.. लो.. यह कपटता है
सब से बड़ी कपटता है
इसका फ़ल होगा एक दिन
तदुचित फल प्रदान तब मिलेगा, भगवान के स्वरुप को नहीं जानता है
मेरे अंग के टुकड़े-टुकड़े कर के काट रहा है
जब महाप्रभु
सब किसी के कारण जो हैं उनको ही जब मानेंगे नहीं
तब किसका आश्रय लेंगे? कौन हमारी रक्षा करेगा