श्रीगजेन्द्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात् परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्॥
य: स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद् विभातं क्व च तत् तिरोहितम्।
अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्पर:॥
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु।
तमस्तदासीद् गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभु:॥
न यस्य देवा ऋषय: पदं विदु-
र्जन्तु: पुन: कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमण: स मावतु॥
गजेन्द्र उतावला होकर दिल से
सामने में मृत्यु है
उनका… पिछले जन्म में भगवान की उपासना करते थे,
कोई कारण से हस्ती देह प्राप्त हुआ
भगवान… इन्द्रद्युम महाराज पाण्ड्य देश के,
उनको अवलम्बन करके
जीवों को शिक्षा देंगे
किस प्रकार से आर्त होकर प्रार्थना करनी चाहिए?
इसलिए यह लीला प्रकाश की
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम
भगवान के पादपद्म में जो जाते हैं, फिर वापस नहीं आते हैं
कारण के लिए
प्रकट होते हैं, शिक्षा देने के लिए
जो स्तव
हृदय से होता है, उतावला होकर
भगवान का आविर्भाव वहाँ पर होता है, आशा लेकर
उनकी भाषा में कुछ कहने के लिए
मेरे माफिक आदमी कोशिश करता है, लेकिन होता नहीं
भीतर में वो भाव तो है ही नहीं
वही भगवान को प्रणाम किया
शरणागत हुआ भगवान के चरणों में
जिनसे तमाम यह जगत चेतन हो गया
मूल चेतन होते हैं भगवान
पुरुष
तीन पुरुषावातर के बारे में आप लोगों ने सुना
परमात्मा पुरुष
फिर उसको और साफा (स्पष्ट) करके बताया परेशाय
तमाम ईश्वरों के ईश्वर उनको मैं ध्यान करता हूँ
उनको प्रणाम करता हूँ, सहारा लेता हूँ
उनमे यह विश्व है
उनसे हैं, उनके द्वारा हैं
और विश्व वही भगवान ही है
कार्य कारण जो कुछ देखते हैं, दुनिया में
सबकुछ भगवान होते हुए भी भगवान उनसे फरक हैं
वो कार्य भी नहीं हैं, कारण भी नहीं हैं
वो स्वतः सिद्ध हैं
स्वतः सिद्ध सर्व कारण कारण
कृष्ण, रामादी रूप जो हैं
उनके चरणों में सहारा ले रहा है
वही विष्णु-इच्छा से ब्रह्मा सृष्टि करते हैं
ब्रह्मा के दिन में यह जगत प्रकाशित होता हैं
मनुष्य, देवता, जंतु, जानवर, चिड़िया कितना कुछ हम लोग देख रहे हैं
यह सृष्ट हुआ
ब्रह्मा के दिन में सृष्टि होती है
रात में नाश हो जाता है सारा ही
यह एक लाख, दो लाख, तीन लाख नहीं अनंत जीव सब खत्म हो जाते हैं
भगवान निर्लिप्त रूप से देखते हैं साक्षी रूप से
भगवान देखते हैं
स्वरुप में जीव जड़ पदार्थ नहीं है, चेतन है
वो मेरी माया से मोहित होकर मुझको भूल के
समझता है; मेरा जन्म हुआ, मैं थोड़े दिन रहा, मेरी मृत्यु होगी
असल में कुछ भी ठीक नहीं हैं
हमारा जन्म भी नहीं होता है, मृत्यु भी नहीं होती है
इसलिए निर्लिप्त रूप से.. निरपेक्ष रूप से देखते हैं
मेरा सहारा ले तो मैं यह माया से उनको उद्धार कर सकता हूँ।
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥
भगवान बोले नहीं; ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य सहारा लेने से उनको उद्धार करेंगे
शुद्र को और
कोई वर्ण बाह्य और कोई किसीको नहीं..
उनको उद्धार नहीं करेंगे जानवरों को नहीं करेंगे ऐसा नहीं
ये प्रपद्यन्ते ते तरन्ति
सबके पास समान हैं
जो शरणागत होगा, उनको उद्धार करेंगे। वो देखेगा जब कुछ भी नहीं हैं
तो यह लोग ऐसा समझते हैं,
यह सृष्टि हुई और सब मर गए
मैं क्या करूँ? मैं निरपेक्ष रूप से साक्षी रूप से देखता हूँ
यह लोग भी देखते हैं, मेरी शक्ति से
यह शक्ति जब ले लेते हैं, तब कुछ भी नहीं रहता है
अर्जुन का गांडीव टंकार देने से सब भय करते हैं
जब कृष्ण वही शक्ति को हरण कर लिए
वही अर्जुन गांडीव उठा नहीं सकता है
कहाँ गई शक्ति?
यह सब झूठ अभिमान है
इसलिए
चक्षु के चक्षु, सब के कारण
सर्वत्र रूप से देखते हैं, मैं तो मुख को देखता हूँ सामने में थोड़े दो-चार आदमी को देखता हूँ
संभव प्रकार से मेरा ज्ञान नहीं है
भगवान अनंत ब्रह्माण्ड, वैकुण्ठ वो सब देख रहे हैं
अभी वही भगवान
मुझे यहाँ पर रक्षा करे
मैं उनका सहारा लेता हूँ, वो मुझे रक्षा करे
तो.. जब महाप्रलय होता है
लोकपाल के साथ सब नाश हो जाता है
ब्रह्मा भी खत्म हो जाते हैं
महाप्रलय complete dissolution
annihilation the whole created being
उस वक्त सिर्फ अँधेरा रहता है
लेकिन तमसः मा ज्योतिर्गमय
असतो मा सत्गमय
मृत्योर्मा अमृतं गमय इति उसके बाद अमृत है
जो परमेश्वर हैं
भगवान उनके पादपद्म सबको लेकर धाम
भगवान एकले नहीं होते हैं भगवान का नाम, रूप, गुण, परिकर, धाम सब हैं।
(उनको छोड़कर बाकी) सब नाश होने के बाद में हम देखते हैं, उस वक्त
बाद में कारण रूप से जो रहते हैं
पारेऽभिविराजते
उनके चरणों में मैं आश्रय ग्रहण करता हूँ
पहले ही बोला जो अभी
अभी मृत्यु हो जाएगी, मुहूर्त में उसके बाद
उससे रक्षा कर सकते हैं
मैं वही परमेश्वर का आश्रय लेने के लिए
स्तव कर रहा हूँ पहले बोला
अभी उनके दिल में दीनता आ गई
मैं तो एक जानवर हूँ
भगवान को श्रेष्ट देवता
ऋषि-मुनि कितना तप करके भी प्राप्त नहीं कर सकते
जानवर होकर उनके बारे में क्या कहूँ?
कुछ भी नहीं कह सकता हूँ
मेरे माफिक जंतु वो भगवान को क्या समझेगा?
स्वयं ब्रह्मा भी नहीं समझ पाए
भागवत में लिखा
कोई कहते हैं,
ब्रह्म-मध्व school ब्रह्मा के मोहन को स्वीकार नहीं करते हैं
लेकिन भागवत में जो लिखा है
उद्देश्य है, इसलिए
भागवत में वेदव्यास मुनि ने नहीं लिखा
कि ब्रह्मा लीला करने के लिए ऐसा कर रहे हैं
यह बात नहीं लिखी
जो शिक्षा के लिए
जो लीला होती है, उसमे यह कथा (बात) लिखने से
उसकी कीमत कम हो जाती है
वो जानते हुए भी नहीं लिखते हैं
हम लोगों का सृजन करने वाले ब्रह्मा जी जो हैं चतुर्मुख
वो भी स्वयं अपनी चेष्टा से नहीं जान पाए, तुम कहाँ से आ गए?
यह बात शिक्षा, शिक्षा को ग्रहण करनी चाहिए
वहाँ वेदव्यास मुनि लिख सकते थे
यह किया… जो ब्रह्मा जी ने किया यह लीला थी यह बात नहीं लिखी
उसमें क्या होगा?
जो शिक्षा देने के लिए यह प्रसंग है
उसका जबर जोर देने के लिए, वो कम हो जाता है
वो लोग नहीं जानते हैं? वेदव्यास मुनि जानते हैं;
हम वेदव्यास मुनि से ज्यादा जान लिए ऐसा नहीं होता है
ब्रह्मा जी
कृष्ण के बारे में शुने, ब्रजवासी कहते हैं
यह स्वयं भगवान हैं
यह कैसे भगवान हो सकता है?
मेरा सृष्ट प्राणी नन्दग्वाला, उसका लड़का है,
कैसे भगवान हो सकता है?
मेरे भगवान को मैं जानता हूँ
उनका तो ऐश्वर्य है ना? भगवान में षड़ ऐश्वर्य हैं, वासुदेव
चतुर्भुज
इनका तो कुछ ऐश्वर्य है ही नहीं
यह तो ग्वाला का लड़का है
बछड़े लेकर जंगल में जाता हैं
ग्वाला के छोटे-छोटे कपड़े पहनता है, लठ्ठी लेकर
ओर एक बंसी है, वो बहुत
जो thin bamboo बहुत
ऐसा बम्बू है, उससे बंसी बनती है
वही बंसी बजाता है, उसकी क्या कीमत है?
made from a thin bamboo
गरीब है
यह वन के जो जंगल के फुल है, उसकी माला पहेनता है
गरीब है ना
और आभूषण नहीं है
एक चिड़िया, मोर उसका पिच्छ (पंख) सिर में लगा लिया
भगवान ऐसे नहीं होते हैं
भगवान को हम जानते हैं
लेकिन जब अघासुर ने देखा
मेरी बहिन पूतना को मार दिया
और मेरे भाई बकासुर को मार दिया
मैं सारे ब्रज के जितने बच्चें हैं सब को खा डालूँगा
तो वो बच्चें होते हैं, माँ-बाप के प्यारे होते हैं
उनको खा डालने से वे रोते-रोते सब मर जाएँगे
इसलिए माया विस्तार कर के
बारा माइल होकर बहुत बड़ा
अजगर सर्प के माफिक होकर पहाड़ के माफिक
एक होंठ निचे में है, one jaw और another jaw ऊपर में है
आ..आ.. करके रहा
तब तो बछड़े चराते थे
छोटे-छोटे बच्चे हैं
देख लिए, हे..!! ब्रज का एक सौन्दर्य देख
कैसा एक पहाड़ है!! साप के माफिक
लेकिन इसके अंदर में गुफा है
वो पेट के अंदर में वो गुफा देखी, जबान को देखा
एक भाल.. एक अच्छा peach का रास्ता है, अच्छा रास्ता है
उसमे जाकर देखते हैं, क्या भीतर में है?
जबान.. कृष्ण थोड़े दूर में हैं
कृष्ण देखा यह सब ग्वाल-बाल बछड़े
एक असुर के पेट के भीतर में जा रहे हैं, भीतर में जा रहे हैं
ए.. मना करने से पहले ही वो एकदम घुस गए
उसमें वहाँ पर एकदम
गले के पास एक गुफा, क्या गुफा है देखते हैं
वहाँ से जहर का गैस आया
आने से वो लोग सब मर गए
अभी इंतज़ार कर रहा है
कृष्ण है, वो आने से फिर मुख बंद कर के सबको खा डालेंगे
कृष्ण दौड़ के आए, भीतर में घुस गए
जब घुस गए, तब मुख बंद करेंगे
कृष्ण अपने शरीर को बढ़ा दिए
कृष्ण साधारण नहीं हैं, बढ़ा दिए होंठ को निचे नहीं ले आ सका
और बढ़ाने लगा, बढ़ाने लगा; बढ़ाते-बढ़ाते-बढ़ाते
उसकी साँस बंद हो गई, ब्रह्म रंध्र भेद करके उसके प्राण निकल गए
इतने बड़े जानवर, दैत्य को, दानव को मार दिया
उसके बाद जितने बछड़े हैं, ग्वाल-बाल हैं
अमृतमय निगाह से सबको जिन्दा कर दिया
तो हम लोग तो मर गए थे, कैसे जिन्दा हुए?
शायद यह कन्हैया ही किया होगा
कन्हैया! अभी तक खाना-पीना नहीं हुआ
कितना समय चला गया उनको मालुम ही नहीं है
शाम को
अभी भोजन करना पड़ेगा हम लोग ले आए हैं, कुछ
चलो-चलो-चलो कहाँ पर भोजन करेंगे?
भोजन-थाली हम लोग जाते हैं ना?
वहाँ पर सरोवर है, वो प्रेम नेत्र से देखा जाएगा
अभी छोटा हो गया, बहुत बड़ा सरोवर है
वही सरोवर के किनारे पर सब बैठ गए
और अपना-अपना जो, पेड़ के ऊपर लटका के रख दिया, बाँध के वहाँ से ले आ रहे हैं
कृष्ण को खिलाएँगे कन्हैया!
अभी खाना पड़ेगा ठीक है
कृष्ण खा रहा है; कैसे खा रहा है?
अभी उनके बाएं हाथ में दधी…
yogurt-rice one morsel of rice holding in left hand palm
ऐसे बाएं हाथ में रखा
और बंसी कमर के अंदर घुसा के रखी
बाम बगल में वेत्र-विषाण हैं
खा रहे हैं -कन्हैया! तू बैठ के खा
हम लोग को बछड़ों को ले आना पड़ेगा अभी बहुत दूर चले गए हैं
रात हो जाएगी तब घर में वापस जाने में देर होने से माँ-बाप गुस्सा करेंगे
इधर में ब्रह्मा जी ने जब देखा कि अघासुर को मार दिया
अरे!! इतना छोटा सा बच्चा है, ग्वाला का लड़का
इतने बड़े असुर को मारा कैसे?
तब परीक्षा करने के लिए आए
पहले परीक्षा करने के लिए भी नहीं आए
मैं जाकर देखूं, फिर वहाँ गए
सब ग्वाल-बाल कहते हैं
कन्हैया!
तू यहाँ बैठ कर खा
भगवान को तू कहते हैं; ओ.. यह भगवान नहीं हैं
भगवान को तो आप बहुत संबोधन करके
फिर भगवान होते हुए
खब्बे हाथ से
खब्बा हाथ पंजाबी भाषा में बोलते हैं
बाएं हाथ में वो..
खाने का नियम नहीं है, शास्त्र का, वेद का विधान नहीं है
बाएं हाथ में दधी-अन्न रख दिया
यह भगवान हो ही नहीं सकते हैं
तू बैठ के खा; कृष्ण कहते हैं, नहीं नहीं नहीं
मैं एकेला ले आ सकता हूँ, सब बछडों को ले आऊँगा
तुम लोग यहाँ पर बैठ के खाओ
बछड़ों को ढूँढने गए
अच्छा ठीक है
वो बछड़ों को चोरी कर के ब्रह्मा
लेकर सुमेरु पहाड़ की गुफा में रख दिया
अब कृष्ण बछड़ों को ढूँढने लगे
हर एक को पूछने लगे
मेरे बछड़ें, हम लोगों के बछड़े यहाँ पर
यहाँ पर आये थे, आप..
वो बछड़ें कहीं देखे आप लोगों ने? -नहीं भाई नहीं देखा
तब बछड़ें जब नहीं मिले हम वापस कैसे जाएँगे?
-वापस कैसे जाएँगे? -हम क्या बोलेंगे?
हम ने तो देखा नहीं
तब ब्रह्मा जी हँसने लगे
यह भगवान हैं
कौन ले गया वो मालुम ही नहीं है
इतने आदमी को पूछ रहा है
और चिंता में निमग्न है
यह कोई भगवान हैं? भगवान तो सर्वशक्तिमान सर्वज्ञ हैं; मैं ले गया वो भी मालुम नहीं
हाँ हाँ ठीक है, तुम भगवान होकर यहाँ रहो
जब नहीं मिले वापस आए
ग्वाल-बालों को ले गया, चोरी करके
सुमेरु पहाड़ की गुफा में रख दिए
ग्वाल-बालों को ढूँढने लगा; जब ग्वाल-बालों को नहीं देखा
तो कृष्ण ने रोना शुरु कर दिया
कृष्ण की माया… ब्रह्मा सबसे बड़े हैं
रोना शुरु कर दिए
हर एक को पूछने लगा; हमारे
बछड़ें खो गए; ग्वाल-बाल खो गए मैं कैसे वापस जाऊँ?
हर एक के पास पूछता है, यह यमुना के किनारे पर पहाड़ के नजदीक में सब जगह में
और रो रहे हैं
हाँ.. तुम यहाँ पर भगवान होकर बैठो, बैठे रहो
मुस्कुराके ब्रह्मा भी चले गए
तब कृष्ण भी मुस्कुराया
मुस्कुराके जितने बछड़े थे उतने बछड़े हो गए
जितने ग्वाल-बाल थे उतने ग्वाल-बाल हो गए
जैसा बछड़े हैं, वैसे; वैसे ग्वाल-बाल
कर्तुम अकर्तुम अन्यथाकर्तुम, समर्थ: स: ईश्वर:
कर सकते हैं, जो किया उसको उल्टा कर सकते हैं, उल्टे को पल्टा कर सकते हैं
everything is possible for Supreme Lord. He is all powerful
He has taken the form of all the cowherd boys and calves
exactly the same
एकदम कोई समझेगा नहीं कि कोई खो गया
घर में जैसे आते हैं, वैसे वापस आए; थोड़ी रात हो गई
देखा अपना बच्चा आ गया
आ गया फिर उसको… गोप-गोपी आए
उसके स्पर्श से रोमांच कंप, अरे!! यह क्या हो गया?
अरे!! हम लोग तो संसार में फँसे नहीं थे
हम लोग तो..
कृष्ण में हमारी आसक्ति है, संसार बाहर में है
लेकिन यह बच्चे को
स्पर्श किया, ऐसा लगा कृष्ण को स्पर्श कर लिया
गोद पर लिया, इतना आनन्द हुआ
दोनों आँखों से आँसू बहा, धारा निकलने लगी
रोमांच, कंप, अश्रु, इतना आनन्द क्या बात है?
भगवान होता हैं भक्त-वत्सल, समर्थ, वदान्य
हेन कृष्ण छाडि’ पण्डित नाहि भजे अन्य।।
वही गोपी के अंदर में, भीतर में आकांक्षा थी, गोप के अंदर में आकांक्षा थी
नंदनंदन कृष्ण कभी हमारा बच्चा होकर आएगा?
हम उसको प्यार करेंगे, चुन्बन करेंगे
और गोपी स्तन पिलाएगी, ऐसा होगा कभी?
बाहर में बोलें नहीं, भीतर में दुःख है
भगवान… पार्षद को कोई दे सकता है? किसीकी हिम्मत है?
एक तरफ ब्रह्मा जी जो अपनी हिम्मत से भगवान को पहचानने गए
ऐसे भगवान को कोई नहीं जान सकते हैं ऐसी शिक्षा दी
और एक है वही गोपी की इच्छा पूर्ति करने के लिए
स्वयं पुत्र होकर आ गए, वो लोग समझे नहीं
कृष्ण होकर नहीं आया; पुत्र
लेकिन स्पर्श होता है, कृष्ण का
और वो लोग का अष्ट सात्त्विक विकार
ऐसा देखकर दाऊ जी समझ लिए
यह क्या हो रहा है?
यह शायद कृष्ण की चालाकी है, कृष्ण ही कर रहे हैं ऐसा
दाऊ जी फिर समझ गए
एक साल तक उनकी इच्छा पूर्ति की
उसके बाद ब्रह्मा जी आए देखने के लिए
आकर देखते हैं, वही बछड़ें, सब ग्वाल-बाल घूम रहे हैं
अरे!! यह तो बहुत चालाक है
मैं सुमेरु पहाड़ की गुफा में रख दिए, कितने करोड़ों माईल दूर में हैं
इसको मालुम कैसे हुआ?
फिर गया वो सुमेरु पहाड़ में
जाकर देखते हैं वहाँ पर तो वही बछड़ें हैं सब ग्वाल-बाल हैं सोए पड़े हैं
वहाँ पर है, गलती देखा
ब्रज में आकर देखते हैं; वो चलते हैं
अभी वहाँ जाने से.. चार सिर हैं
चार सिर से इधर भी देखते हैं उधर भी देखते हैं
इधर भी ग्वाल-बाल हैं, उधर भी ग्वाल-बाल हैं
वहाँ सोए हैं, यहाँ चल रहे हैं
जब वहाँ पर गए
जो ग्वाल-बाल की जैसी सूरत हैं,
कंठ की आवाज है ऐसी…
jump अर्थात् कूदना
ये सब जितने किस्म का हैं,
शरीर में कोई चिह्न है, वो भी है
सारा एकदम ठीक हैं, कोई समझा नहीं
कि कृष्ण ही हैं हमारा लड़का….
यह कृष्ण हैं, हमारा लड़का नहीं है, यह नहीं समझा; समझा हमारा लड़का ही है
क्या हो गया? हम लोग संसार में फँस गए
असल में उनकी इच्छा पूर्ति की
और ब्रह्मा जी वो देखकर
जब दोनों तरफ एक साथ में देखा
यहाँ भी ग्वाल-बाल हैं, वहाँ भी
वहाँ भी बछड़े हैं
मायिमायिनि
जिनकी माया से दुनिया मोहित होती है,
वो जरुर मेरे ईश्वर हैं, मैंने गलती की
मैं समझ गया, मैंने अपराध किया
मेरी माया से दुनिया मोहित है; मैं जिनकी माया से मोहित हूँ वो मेरे ईश्वर हैं
उनके चरणों में शरणागत हुए, गिर पड़े
जब शरणागत दिल से होंगे
तब साथ-साथ में, फलेन फल कारण अनुमीयते
फल द्वारा फल कारण को अनुमान करो, हम शरणागत हुआ कि नहीं
दिल से अत्यंत अनुतप्त होकर शरणागत हुआ
साथ-साथ में कृष्ण ने कृपा की
देखा जितने ग्वाल-बाल बछड़े हैं, सब वासुदेव हैं
शंक, चक्र, गदा, पद्मधारी किरीट कुंडल धारी पित वसन धारी
वो मेरे इष्ट देव हैं
मैं तो समझा था, यह बछड़े हैं, ग्वाल-बाल हैं
बेहोश होकर गिर पड़े
एक दफे उठते हैं, गिरते हैं; उठते हैं गिरते हैं
फिर कृपा की
बछड़े भी नहीं हैं, ग्वाल-बाल भी नहीं हैं
प्रसंगवत सब लिखा हैं
एक कृष्ण खड़े हैं
वासुदेव मूर्ति भी नहीं हैं, बाएं हाथ में दधी-अन्न है
कमर में बंसी घुसा कर रख दी, वाम बगल में वेत्र-विषाण हैं, खड़े हैं
और उनसे अनंत वासुदेव निकल रहे हैं
एक भी नहीं
तब ब्रह्मा जी समझे जो हमारे आराध्य हैं उनके भी कारण
श्रीनंदनंदन कृष्ण हैं
तब स्तव शुरु किया जो हम लोग पुरुषोत्तम महिने में
श्रीब्रह्मोवाच नौमीड्य तेऽभ्रवपुषे तडिदम्बराय
गुञ्जावतंसपरिपिच्छलसन्मुखाय।
वन्यस्रजे कवलवेत्रविषाणवेणु-
लक्ष्मश्रिये मृदुपदे पशुपाङ्गजाय॥
(भा. 10.14.1)
यह स्तव है
ब्रह्मा जी स्तव कर रहे हैं
आप पूज्यतम हैं
तमाम ऐश्वर्य माधुर्य के मूल हैं
आपका वर्ण है, घन मेघ के माफिक वर्ण
नौमीड्य तेऽभ्रवपुषे तडिदम्बराय
ऐसे तो पित वसन हैं
उसकी चमत्कारीता होती है बिजली के माफिक
चमत्कार विद्युत्
गुञ्जावतंस
यह जो आपका वदन कमल हैं, गुञ्जा द्वारा विरचित हैं
कर्ण भूषण हैं
मयूर पिच्छ (पंख) द्वारा बहुत सुंदर है
और जो बाएं हाथ में दधी-अन्न है
उसको देखकर कहा, यह तो वेद के विधान को नहीं जानते हैं
इनका.. इनके माफिक माधुर्य और कोई स्थान पर नहीं हैं
वही… पशुपाङ्गजाय
और जो पादपद्म हैं, बहुत कोमल हैं
सब पादपद्म द्वारा शोभित हैं, वृन्दावन धाम हैं
पदचिह्न द्वार और
‘पशुपाङ्गजाय’ मतलब वही
गोप रूप से जन्म लिए हैं, नन्द महाराज
नन्द महाराज गोप को पालन करने आए
गायों को पालन करनेवाले गोप हैं इसलिए
इसलिए पशुपाङ्गजाय
मृदुपदे पशुपाङ्गजाय
तमाम वस्तु के, सब कारणों के कारण हैं
वहाँ पर ही बोला
अथापि ते देव पदाम्बुजद्वय- प्रसादलेशानुगृहीत एव हि।
जानाति तत्त्वं भगवन् महिम्नो न चान्य एकोऽपि चिरं विचिन्वन्॥
(भा. 10.14.29)
हे कृष्ण!
आपकी जरा सी कृपा जिनको मिली है, वही आपको जान सकते हैं
जिनको कृपा नहीं मिली
हमेशा जब ढूढें तब भी आप नहीं मिलेंगे
नहीं मिल सकते हैं
इस प्रकार वहाँ पर
वही जो स्तव में
ज्ञानी लोग जो उनको ब्रह्म रूप से देखते हैं
‘ब्रह्म’ योगी लोगों के जो उपास्य हैं और
शांत, दास्य, साख्य तक बोलें
और वात्सल्य में दूर से प्रणाम किया
ब्रह्मा जी
वात्सल्य वही भगवान को
स्तन पिलाती हैं यह गोपी सब; यह कैसा है?
दूर से प्रणाम किए; अरे!! बाप रे यह तो….
जैसा आनंद हुआ
वही गोपी की गोद पर रहकर
स्तन पिने में, यह तो कभी देखा ही नहीं
और कान्त रस के बारे में बोले ही नहीं
वात्सल्य रस को भी दूर से प्रणाम किया
उसी प्रकार उनका ही
जो वर से वो नन्द महाराज हुए, यशोदा देवी हुई
जो वसु श्रेष्ट है और धरा
उनकी तपस्या किए थे, तपस्या से ब्रह्मा जी के वर से ही हुए
लेकिन ब्रह्मा जी खुद ही नहीं समझ सकते हैं
और उसको देखकर
हम लोग इतना हवन करते हैं इतना कुछ करते हैं
भगवान का वेद मंत्र उच्चारण कर के कितना…
उच्चारण करते हैं भगवान को सुख देने के लिए
भगवान प्रसन्न नहीं होते हैं
लेकिन ये.. गोपी
का पुत्र होकर स्तन पान करके इतना आनंद हुआ
पुनः पुनः कर रहे हैं
इनका दर्जा कितना उच्च कोटि का है
अहो भाग्यमहो भाग्यं नन्दगोपव्रजौकसाम्।
यन्मित्रं परमानन्दं पूर्णं ब्रह्म सनातनम्॥
(भा. 10.14.32)
यह लिखा है ना?
इसलिए वही ब्रह्मा जी भी मोहित हो गए
दूसरे की बात छोड़ दो
अभी देखिये वही
शिव जी भी मोहित हो गए
शिव जी तो भोलानाथ हैं ना? सब जगह में जाना चाहिए
भक्त हैं हमारे वैष्णव सम्प्रदाय के, विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के गुरु रूद्र हैं
जहाँ पर जो होगा वहाँ जाना चाहिए शिव जी को
हर एक.. भोले नाथ
जब सुना समुद्र मंथन करने के बाद
वहाँ पर मोहिनी मूर्ति धारण करके
सब असुरों को वंचना कर के, सिर्फ राहू थोड़ा कुछ
वो बिच… चन्द्र और सूर्य के बिच में बैठ गया था
मुख में दिया था लेकीन गर्दन काट दिया था राहू-केतु
और किसीको नहीं दिया
वही जो अमृत का भांड
इतना अमुल्यवान वो लेकर भाग गया था
लेकिन वही अमृतभांड लेकर फिर वहाँ पर झगडा शुरु हो गया
भगवान की इच्छा से
तो वहाँ पर भगवान मोहिनी मूर्ति धारण किए
उसको देखकर सब एकदम चुप-चाप हो गए; ऐसी सुंदरी कभी देखी ही नहीं
लेकिन बात नहीं करती हैं; सब कहते हैं झगडा करने की जरुरत नहीं है उनके पास जाएँगे
आप हम लोगों का झगड़ा मिटा दीजिए
मैं जो.. मैं तो क्या झगड़ा मिटाऊँगी
-आप लोग कुछ बोल नहीं सकेंगे जो हम करेगे -नहीं हम लोग कुछ नहीं करेंगे
आप यह ले लीजिए
अमृत का भांड दिया
वो देखा, ऐसा ऐश्वर्य प्रकाश किया
सारे असुर देखते हैं, मेरे ऊपर निगाह दी, मुझे ही मिलेगा
यह मिले तो और हमारी कुछ जरुरत नहीं है
इतनी सुंदरी इतनी मोहिनी मूर्ति कभी देखी नहीं
ऐसा ऐश्वर्य प्रकाश किया; हर एक असुर देखता है कि उनके ऊपर ही निगाह दे रहे हैं
मोहित होकर दे दिया
देने के बाद सब को line में बिठा दिया
line में बिठा दिया अभी
वही अमृत बंटन करने लगी, बंटन करते-करते
तब देखा जब देवता से शुरु किया, अरे!!
हम लोगों के ऊपर निगाह देके, देवता से शुरु किया
तब राहू जाकर उसके अंदर में बैठा था
उसके पत्तल में भी अमृत दे दिया, वो मुख में दिया
उसकी गर्दन काट दी, राहू-केतु
और किसीको नहीं दिया ऐसा होता है ना?
जो खीर ज्यादा होती है, यहाँ तो ज्यादा होती है
बांग्ला मुल्क में थोड़ी कम होती है
खिचड़ी होती है, खिचड़ी, लाबडा देते हैं सबको
परमान्न जब देते हैं ना?
तब जहा से शुरु करते हैं आखरी का आदमी समझता है मेरे पास आएगी कि नहीं
आयेगा कि नहीं, चिंता होती है
इधर में तो खीर बहुत मिलती है, घर ले जाते हैं
लेकिन बांग्ला मुल्क में ऐसा है
तो वो खीर देते-देते आखरी में सब का डर होता है
इस बार वो लोग वंचित हो गए
तो शिव जी
भगवान की मोहिनी मूर्ति तो मैं नहीं देखा
अपनी उमा को लेकर भगवान के पास आए, पार्षदों को लेकर
प्रार्थना की – आप आपका मोहिनी रूप वहाँ पर प्रकाश करके
सब असुरों को मोहन कर दिए
मैं उसको देखने के लिए चाहता हूँ
मेरी इच्छा पूर्ति कीजिए
तुम भी मोहित हो जाओगे
उसके बाद जब मोहिनी मूर्ति.. वो इसमें ही इस ग्रन्थ में ही वर्णन है
वो देखकर तो ऐसी लीला की
देखकर एकदम मोहित हो गए
साथ में उमा हैं
और वही मोहिनी मूर्ति तो साक्षात् कृष्ण हैं
कृष्ण के भक्त तो हैं रूद्र
कृष्ण स्त्री देह हैं यह तो कृष्ण हैं
वो उनके पीछे-पीछे दौड़ने लगे
उनसे चाँदी, सोना की सब खान हो गई
वही शिव जी से आखरी में
शिव जी को फिर कहा
वही शिव जी का महात्म्य बोलें, बोलके
उनका भी शिव जी भी मोहित हो गए
जहाँ पर शिव जी ब्रह्मा जी मोहित हो गए
मैं अब जानवर, मैं क्या आपका महात्म्य… मैं बोल सकता हूँ?
यह तो दुर्ज्ञेय चरित्र हैं, ऋषि-मुनि नहीं जानते हैं
ऋषि-मुनि का भी, उनका भी दुर्ज्ञेय है
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं विमुक्तसङ्गा मुनय: सुसाधव:।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने भूतात्मभूता: सुहृद: स मे गति:॥