गजेंद्र मोक्ष – 6

श्रीमद्भागवत अष्टम स्कन्ध
तृतीय अध्याय

श्रीबादरायणिरुवाच
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम्॥

शुकदेव गोस्वामी कहते हैं,
उसके बाद कल तो आप लोगों ने सुना
गजेन्द्र ने जितनी अपनी चेष्टा है,
हज़ारों साल तक लड़ाई की, ग्राह से लड़ाई की
लड़ाई कर के उसकी इन्द्रिय-शक्ति, शरीर की शक्ति
और मन की शक्ति सब क्षय हो गई।
wasted all his energy
and in tern physical and senses organs
now he is seeing imminent death, and there is no other way
but still he was fighting, fighting
and thinking what to do? what to do?
how I can be rescued from this?
अभी उनको याद आ गया
पिछले जन्म में [वे] भक्त थे,
अगस्त्य ऋषि के अभिशाप से ऐसा हो गया
भक्ति कभी नाश नहीं होती।
कोई कारण से उस पर आवरण आ जाता है,
फिर, आवरण जब चला जाता है
वो सारी भक्ति उनके पास प्रकाशित हो जाती है।
अपनी चेष्टा से हम लोग संसार से
ग्राह का मतलब, this grāha crocodile means
this world… worldly attachment
हम लोग चाहते हैं, अपने आप को मुक्त करने के लिए
संसार से मुक्त करने के लिए
लेकिन जब अपनी चेष्टा से होता नहीं
तभी तो गुरु, कोई और विशेष शक्तिशाली व्यक्ति का आश्रय लेते हैं।
यह बात यहाँ पर दिखाई
वो जो ग्राह है, वो संसार है
उनके साथ लड़ाई की, हज़ारों साल
लड़ाई कर के जित नहीं सका
इतने वक्त तक उनके भीतर [मन] में है कि मैं लड़ाई कर के
मैं मेरी रक्षा कर सकता हूँ।
आखरी में देखा उनके साथ में और जो गज हैं, हाथी हैं
और हस्थिनी तो स्त्री हैं, वो लोग क्या करेंगे? वो रोती हैं
उन्होंने देखा कोई उनकी रक्षा कर नहीं पाया;
स्वयं अपनी हिम्मत से नहीं, दूसरे और कोई
जितने हाथी हैं, वो भी रक्षा नहीं कर पाएँ।
तब देखा
क्या करेंगे? क्या करेंगे? दीर्घ चिंता करते-करते
पिछले जन्म का जो स्तव है;
पिछले जन्म में भगवान का जो स्तव करते थे वो याद आ गया;
[मैं] पाण्ड्य देशीय इन्द्रद्युम्न महाराज[था], वो याद आ गया।
इसलिए शरणागति एक दफे जब भगवान में आ जाय;
शरणागति आ जाने से सब समाधान हो जाता है।
यह तो शास्त्र में है
और यह कलियुग में एक घटना हुई,
यह घटना हम लोगों ने गुरूजी के मुखारविंद से सुनी
वो वास्तव है, जब हमारा भारत वर्ष
ब्रिटिश के,
ब्रिटिश government थी, under the regime of British
at that time
उस समय क्या हुआ?
जर्मन emperor के साथ, जर्मनी के
जो dictator था, हिटलर
उसकी United Kingdom के साथ लड़ाई हुई
United Kingdom, France के साथ लड़ाई हुई
France के पक्ष में United Kingdom आ गया।
फिर लड़ाई हो रही है, उस लड़ाई में
अभी हिटलर है, dictator
उसने सारा ले लिया और लड़ाई कर रहा है
उधर जर्मनी में दुर्ग है
fortress ‘Siegfried Line’
और इधर France में है ‘Maginot Line’
तब तक विमान आया नहीं, विमान सिर्फ शुरू हुआ।
विमान का थोड़ा आरम्भ हुआ, प्रारंभ हुआ।
वही विमान के pilot था;
Professor Nikson, Professor तब नहीं था।
Nikson.. उन्होंने अपना जीवन चरित्र लिखा।
जिसे कहते हैं auto-biography. He has written his own life.
auto-biography में उन्होंने लिखा
I was out and out atheist,
I have become out and out theist
मैं बहुत बड़ा नास्तिक था, ईश्वर में विश्वास नहीं करनेवाला था;
आज बहुत बड़ा ईश्वर विश्वासी हो गया।
उनकी history आप लोग पढ़ के देखिये, उन्होंने स्वयं लिखा।
अपनी auto-biography
तो वहाँ पर
जब वो pilot बने उनके साथ में और दो आदमी थे।
उनको duty दी गई,
observation कर के,
to see all the places there in Germany where
what they are doing and to give report
वे विमान में चढ़ के जाते हैं।
तब developed विमान नहीं था।
लेकिन विमान शुरु हुआ था,
तब विमान को देखकर जर्मन आर्मी ने विमान को मारने के लिए कोशिश की।
लेकिन ऊपर बन्दुक की गोली जाती नहीं।
तब वो लोग चेष्टा कर रहे हैं, विमान आता है;
anti aircraft gun जिसको कहते हैं
तो वो जो है, उसको बनाने के लिए
एक दफे क्या होता है
जब सम्मान हो जाता है, ना? सम्मान
name and fame तब
कभी-कभी हम लोग गलती कर लेते हैं।
प्रतिष्ठा के लिए.. सब चाहते हैं, ना? प्रतिष्ठा
ख्याति, तो ख्याति हो गई उनकी
उनका नाम हुआ
तो नीचे उतर के थोड़े अच्छे तरीके से देख के report देंगे।
तो [विमान] नीचे उतारा और एक गोला आ गया।
cannon ball struck the petrol tank.
and engulfed the whole aircraft to fire
ऐसा हो गया
वो तो कहते हैं, “मैं चर्च में नहीं जाता था।”
बाइबल पढ़ता नहीं, जिसको देखा नहीं जाता; वो है ही नहीं
मैं भगवान को नहीं मानता हूँ।
I don’t believe in god
he did not go, he didn’t use to go to church
to say prayer etc.
and to go through and hear Jesus Christ writing
हम नहीं जाते थे, वहाँ पर
बाइबल पढ़ता नहीं था।
लेकिन उस वक्त मुझे लग गया
अभी मुत्यु अनिवार्य है;
मैंने पुकारा
by saying..
that imminent death is there
and I cried loudly.
Oh! if there be any Supreme Lord, Who is omnipotent
protect me.. he is saying rescue me! rescue me! rescue me!
after that he became unconscious.
and by the Lord grace that
plane crashed within the France territory
and the army came and they called ambulance
they saw two were dead and only Nixon is
he is living but unconscious
he was taken in the under-ground hospital
वहाँ पर जा कर हस्पताल में चिकित्सा की।
चिकित्सा करने के बाद, उनको होश नहीं आया।
तब उनको भेज दिया London में
दो महीने के बाद उनको होश आया;
वो कहते हैं, “मेरे साथ में थे वो कहाँ हैं?”
वो तो साथ-साथ में मर गए।
ओह.. मैं बच गया।
तब कोई सर्वशक्तिमान भगवान हैं।
थोड़ा कुछ जरा से, जरा से
यह भीतर में जरा-से शरणागति का भाव जरा-से आया,
उससे ऐसा हो गया, जरुर है..!!
नहीं तो मैं बच नहीं सकता हूँ।
जरुर है, भगवान हैं… भगवान को हम देखेंगे..!!
भगवान को हम देखेंगे; चर्च में जाना शुरु कर दिया।
बाइबल पढ़ने लगा और जितने पादरी हैं
priest हैं, उनको पूछते हैं; बहुत सवाल करते हैं।
वो लोग बोलते हैं, हम लोग साधारण ethical principle, moral principle के बारे में बता सकते हैं।
लेकिन भगवान को दर्शन करने के लिए.. वो हम लोग का…
वो ज्ञान हम में नहीं है।
वो जानने के लिए आप को भारतवर्ष में जाना पड़ेगा।
एक बुद्ध monk के साथ मुलाकात हुई उनसे बात हुई।
जब ऐसा बोला भारतवर्ष में जाना पडेगा।
तब भारतवर्ष उस समय ब्रिटिश government के under में है;
और ब्रिटिश चाहते हैं, अपना आदमी जाए
तब उन्होंने एक दरखास्त दे दी
कि मैं भारतवर्ष में जाने के लिए इच्छा करता हूँ।
साथ-साथ में ठीक है;
Lucknow university के professor बनाकर भेज दिया।
तब professor होकर आ गया Lucknow university में
Professor Nixon नाम हुआ तब
पहले pilot था।
वहाँ आकर professor कात्फोर्मा और जितने हैं
उनकी सहायता ली, ज्ञानेंद्रनाथ चक्रवर्ती
एक बंगाल के बहुत विद्वान् व्यक्ति थे।
वे university के Vice-chancellor थे
उनकी स्त्री भक्तिमति थी, यशोदा माई
चैतन्य महाप्रभु की भक्त थीं, कृष्ण-भक्त
तो उन्होंने वहाँ जाकर देखा संस्कृत पढ़ना होगा
संस्कृत पढ़े बगैर
भारत के शास्त्र को आप नहीं समझ सकते हैं।
तब संस्कृत की शिक्षा की।
बहुत अच्छे रूप से शिक्षा की,
उसके बाद सारे शास्त्र पढ़े,
वेदान्त पढ़ के उनको आनंद हुआ, बुद्धि को खुराक मिली।
आखरी में जब भागवत पढ़ा;
भागवत पढ़ते-पढ़ते उनको ऐसा हुआ,
इतने वक्त तक तो बुद्धि की खुराक मिली;
लेकिन heart की खुराक नहीं मिली।
कृष्ण-प्रेम प्राप्त करने के लिए पागल हो गए,

जब heart का खाना इतने वक्त तक हमको मिला नहीं;
यह असल में यही है, भागवत में मिल गया।
तब कहते हैं, “आपको मंत्र लेना पड़ेगा।”
वो यशोदा बाई से मंत्र लिया;उनका
उनका नाम हुआ कृष्णप्रेम; कृष्णप्रेम में पागल हो गया, ना?
उसके बाद
चैतन्य महाप्रभु का जन्म स्थान जो है;
जहाँ पर हमारे परमगुरूजी थे,
वहाँ पर गए चैतन्य महाप्रभु का स्थान
हमारे परमगुरूजी
बाहर से भीतर से बहुत विद्वान् थे।
English जानते सब कुछ जानते थे, वहाँ पर जाकर;
उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा ग्रहण की, प्रभुपाद के पास
वो ग्रहण करके, उनको बहुत आनंद हुआ।
तीर्थ-तीर्थ में रह कर अल्मोरा में उन्होंने शरीर छोड़ दिया।
उन्होंने लिख दिया, मैं एक नंबर नास्तिक था, एक नंबर आस्तिक हुआ।
लिखा है;
इसी प्रकार इसलिए जब एकदफे
वो ईश्वर के पर विश्वास से.. एकदफे
यहाँ पर तो हम लोग शास्त्र में देखते हैं।
एक तो शास्त्र नहीं यह तो एक इतिहास है, एक घटना है।
यह घटना में थोड़ा नास्तिकता भगवान को विश्वास नहीं करता था।
लेकिन मृत्यु के पहले
उन्होंने भगवान का नाम लेकर भगवान का नाम तो नहीं लिया, उनका गुण लिया;
हे सर्वशक्तिमान..!! कोई सर्वशक्तिमान हो तो
वही सर्वशक्तिमान मेरी रक्षा करे..!!
कोई सर्वशक्तिमान रहे, मेरी रक्षा करे..!!
सर्वशक्तिमान भगवान ने रक्षा की।
हम लोगों की भी [रक्षा] करेंगे।
यहाँ पर वही गजेन्द्र, अपने
पूर्व जन्म में स्तव किया, उनके दिल में जब आ गया
तब वही स्तव वह कर रहा है।
वो स्तव से भगवान वहाँ प्रकट हुए;
इसलिए वह स्तव जब हम लोग उस प्रकार से उतावले (आर्त-भाव) होकर;
उनके अंदर में उतावला भाव है।
हम लोगों के अंदर में वो चिंता नहीं है।
लेकिन वो अभी मृत्यु के सामना में लड़ाई कर रहा है, उतावला भाव है
उतावला भाव से वो स्तव कर रहा है।
उसी प्रकार उतावला भाव हम लोगों के अंदर में जब हो;
तब भगवान ने
जब गजेन्द्र की रक्षा की, हमारी रक्षा नहीं करेंगे?
इसलिए वही स्तव को हम लोग
उसी प्रकार उतावला भाव से जब कर सके
हम को तो हर साल करने के लिए मौका मिलता है।
लेकिन भाव भीतर से आता नहीं है, ना?
इसलिए यथार्थ फल नहीं मिलता।
लेकिन तब भी आशा जब हो जाय

श्रीगजेन्द्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥

श्रीगजेन्द्रः उवाच — ॐ
(“ॐ तत्सदिति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविधः स्मृतः”
इत्युक्तरीत्या ओमिति ब्रह्मणः निर्देशपरः अतः)
तस्मे (एवंविधाय) भगवते (वासुदेवाय) नमः।
भगवते (वासुदेवाय)
यतः (यस्मात् चिद्रुपात् भगवतः)
एतत् (देहादिकम् अचेतनमपि) चिदात्मकं
(चेतनवत् भवति यतः एवमतः) आदिबीजाय
(परमकारणाय) परेशाय
(परेषां ब्रह्मादीनामपि ईशाय)
पुरुषाय (पुर्षू देहेशु कारणत्वेन प्रविष्टाय)
अभिधीमहि (अभिध्यायेम)॥

गजेन्द्र वो कहते हैं,
वही भगवान वासुदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।
नमस्कार; पहले उनका आश्रय लेते हैं, किसका?
भगवान वासुदेव
जिनसे सारा देह, जो कुछ देखते हैं; यहाँ पर चेतनवत् हुआ।
इसलिए आदि में
यह सारा यह जो जगत की सृष्टी के आदि में कौन हैं? बीज स्वरुप जो हैं
वो भगवान ब्रह्मादी के भी ईश्वर
और देहपुर में कारण रूप से प्रविष्ट
परम पुरुष को मैं ध्यान करता हूँ, ध्यान
अभी देखिये ॐ तत्सदिति

ॐ होता हैं अऊम ; ‘अ’ शब्द का अर्थ होता है विष्णु
‘ऊ’ रूद्र; ‘म’ ब्रह्मा
ब्रह्मा विष्णु ॐ
ऐसे तो अऊम उच्चारण करते हैं।
हम देखा वही आगरा में जब पहले जाते थे;
ताजमहल में ले जाते थे, बहुत सुबह एकदम
वहाँ पर बहुत आदमी ५०-६० आदमी बैठे रहते हैं।
वहाँ पर जाकर कीर्तन करना, कथा बोलनी पड़ती थी।
हम को ले जाते थे और
यह ‘ॐ’ उच्चारण करके ध्यान करते थे।

‘ॐ’ का बहुत किस्म का अर्थ हैं।
जिनका अपना-अपना इष्ट देव का प्रकाश; ॐ बीज हैं,
एक दफे गुरूजी; हमारे तेजपुर में एक मठ है;
north-east Assam
वहाँ पर गुरु महाराज जी अपने कमरे में है,
और एक सुदर्शन प्रभु हमारे गुरूजी के गुरुभाई
गुरुभाई.. वो अभी नहीं हैं; अप्रकट हो गए
तो वो वहाँ पर थे और कोई व्यक्ति से बहुत तर्क हो रहा है
वो कहते हैं, “ॐ का अर्थ ब्रह्मा, विष्णु, महेश है।”
वो कहते हैं, ना इसका अर्थ यह है।
दोनों में बहुत तर्क-वितर्क, झगड़ा हुआ;
बाद में गुरूजी वहाँ पर आए, मैं वहाँ पर था।
आकर कहते हैं,
‘ॐ’ तो बीज हैं, तुम लोग फ़जूल झगड़ा क्यों करते हो?
यह हरेक के अपने इष्ट देव ॐ के अंदर में ही हैं।
इसलिए सिर्फ एक ही अर्थ का प्रकाशक हैं ऐसी बात नहीं है।
आपस में झगड़ा नहीं करना;
तो यहाँ पर बीज
ॐ उच्चारण करके कहते हैं, ॐ तत् सत्
किसके पास जाते हैं? तत्
जो तत् वही सत् हैं; और जो सत् हैं वही तत् हैं।
अभी
यह शरीर सत् नहीं है, सत् का मतलब
नित्य, हर वक्त रहनेवाला;
शरीर का जन्म हुआ,
थोड़े दिन रहेगा, मर जाएगा।
किसीका शरीर नहीं रहेगा, अभी जितने शरीर हैं;
छः सौ करोड़ आदमी हैं,
यह पृथ्वी में
अभी डेड़ सौ साल (150) के बाद एक आदमी भी नहीं रहेगा, अभी जो हैं (उनमें से)
नये आदमी आएँगे, अभी जो जितने आदमी हैं; एक आदमी भी नहीं रहेगा।
डेड़ सौ साल का आदमी, डेड़ सौ साल से..
ज्यादा आयु किसीकी होगी नहीं।
इसके अंदर में सब ख़त्म
उसके पहले ही ख़त्म हो जाएँगे।
इसलिए वो जो है, यह
सब अनित्य है, इसको असत् कहते हैं।
नित्य प्रकाशमान नहीं है,
अभी जन्म हुआ, थोड़े वक्त रहेगा, चला जाएगा।
जो शरीर असत् है,
नाशवान है, शरीर की प्राकृत इन्द्रियाँ भी नाशवान हैं।
प्राकृत इन्द्रियों से जो कुछ देखेंगे सब नाशवान हैं।
वो तो नित्य नहीं हो सकता है।
जब नित्य होगा, प्राकृत इन्द्रियों के ग्रहण-योग्य नहीं होगा;
शरीर नाशवान, शरीर की प्राकृत इन्द्रियाँ नाशवान;
और सूक्ष्म शरीर भी नाशवान,
उसका जो मन, बुद्धि हैं;
वही मन की चिंता material mind जो गीताजी में लिखा है;
भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा॥ अपरेयम
यह अपरा प्रकृति हैं,
परा का मतलब श्रेष्टा प्रकृति
spiritual potency
अपरा अश्रेष्ट निकृष्ट हेय
जड़ा प्रकृति material energy
उसके अंदर में यह पञ्च महाभूत हैं।
आकाश, वायु, आग, जल, मिट्टी हैं।
और मन, बुद्धि, अहंकार हैं;
पञ्च महाभूत से शरीर बना
मन, बुद्धि, अहंकार से सूक्ष्म शरीर बना
और एक शरीर है
जो स्वरुप है जो
भगवान की परा प्रकृति से निकला।
यह छोडके और एक प्रकृति है उसका नाम परा है।
वही चेतन प्रकृति से यह आत्मा है।
तो प्रकृति का मालिक कौन है? भगवान हैं
प्रकृति से पैदा हुआ शरीर, उसका मालिक कौन होगा?
If he is the owner of all potencies
these parā and aparā prakṛti as it is said in Gita.
Then the products produced by that potency
owner will be Krishna, He is the owner of my body.
I have got no control.. I have no
ownership over my body or my subtle body
actually, belongs to Supreme Lord
body belong to Supreme Lord, subtle body belongs to Supreme Lord
ātmā belongs to Supreme Lord, I am of Krishna
हरि ॐ तत् सत् तत् सत्
जो इन्द्रियाँ ज्ञानातीत हैं, वही होती हैं सत्
प्राकृत इन्द्रियों के अतीत हैं, beyond the comprehension of material sense organs
that is eternally existing
जो प्राकृत इन्द्रिय से ग्रहण किया जाएगा, वो अनित्य है।
जो नित्य होगा तत् इन्द्रिय ज्ञानातीत
वही इन्द्रिय ज्ञानातीत, अतेन्द्रिय
जो है, वो सत् है
वो हमेशा रहनेवाला है;
इसलिए कहते हैं, ‘हरि ॐ तत् सत्’
जो तत् है, वही सत् है
जो सत् है, वही तत् है
अभी एक दफे
मैं गुरु महराज जी के साथ
पहले तो मंदिर-मंदिर में प्रवचन होते थे, जलंधर में
यहाँ पर तो भटिंडा, पहले हम लोग
जगाधरी में आए, उसके बाद लुधियाना उसके बाद जलंधर में आए।
बाद में भटिंडा आए और एक जगह में….
जलंधर में जब गुरूजी वहाँ गए
तो वहाँ पर यह माई हीरां गेट में सभा हुई।
सनातन धर्मसभा का मंदिर है;
के. एन. कपूर… डॉ. के. एन. कपूर का घर नजदीक में था,
चिंतापूर्णी मंदिर है;
चिंतापूर्णी मंदिर में हम लोग ठहरे, गुरूजी के. एन. कपूर के घर में ठहरे;
वहाँ सब विशेष व्यक्ति गुरूजी से मिलने के लिए आते हैं।
वहाँ पर drawing room है। सब देखने के लिए आते थे। इसलिए गुरूजी वहाँ पर रहे।
अभी, गुरूजी को सब जलंधर के भक्त बुलाए।
‘All Panjab Religious Conference’
सब पंजाब के भक्तों को बुलाया।
बहुत पार्टी आती थीं
तो अभी हम लोग चिंतापूर्णी मंदिर में ठहरे;
उस समय गुरूजी को वह लोग बोलें
चैतन्य महाप्रभु के आविर्भाव के उपलक्ष में यह सम्मलेन है।
आप फलाना तारीख में आठ बजे
उसका उद्घाटन करना, उसके बाद सभा परिचालना करना।
गुरु महाराज जी सब वो लोग खर्चा किया।
सब को ले आने के लिए
जितने आदमी, महात्मा लोग आ जाए हम लोग उनके आने-जाने की सब व्यवस्था करेंगे।
तब गुरूजी वहाँ आ गए, वो लोग व्यवस्था किए।
अभी कीर्तन पार्टी पहले चली गई, नजदीक में है।
वही के. एन. कपूर के घर से
दो-तीन मिनट, चार मिनट लगती हैं।
दूर नहीं है, माई हीरां गेट
कीर्तन पार्टी चली गई, पैदल जा सकते हैं।
तो हम लोग गुरूजी के साथ मैं थे
अभी जाएँगे वहाँ से आया आठ बजे, उद्घाटन में
जब निकले वहाँ तीन-चार कार आ गई।
कार से विशेष-विशेष व्यक्ति निकले।
गुरूजी से कहा
आप का नाम पेपर में देखा, अखबार में देखा;
इसलिए बहुत आशा लेकर हम लोग आए हैं।
आप जरा-सा मेहरबानी कर के
मौका दीजिए, आप से बात करने के लिए।
गुरूजी कहते हैं, “हम लोग को इन लोगों ने बुलाया हैं।”
बहुत पैसा खर्चा कर के ले आये हैं।
अभी आठ बजे वहाँ पर उद्घाटन होगा।
आज तो हो नहीं सकता है।
अभी तो मुझे जाना पडेगा उद्घाटन करने के लिए।
कल आईए, कल बात-चित…
पहले से मालुम होने से हम व्यवस्था कर देते।
लेकिन अभी तो समय नहीं है।
वो समय डॉ. के. एन. कपूर आ गए।
उन्होंने देखा यहाँ के सब धनि व्यक्ति है।
business magnate है;
उनके साथ में
income tax officer है, मिस्टर पांडे
तब गुरूजी के पास कहा, “गुरूजी!!
आपको थोड़ा ठहराना चाहिए, विशेष व्यक्ति हैं।”
हम ख़बर दे देते हैं, आपको पन्द्रह मिनट लेट होगा।
तब गुरूजी वापस आ गए।
अभी भी मेरे (स्मरण में) है picture
मैं आ गया, सब पार्टी वहाँ हैं।
बैठ गए, पांडे साहब कहते हैं
गुरूजी के सामने में
मैं आत्मा को नहीं मानता हूँ।
जिसको आखों से देख नहीं सकता,
हाथ से छूह नहीं सकता, उसका कोई अस्तित्त्व है ही नहीं।
उसको मैं नहीं मानता।
आपके पास बीस सवाल लेकर मैं आया हूँ।
तब गुरु महाराज जी
हर वक्त सम्मान देकर बात करते थे;
गुरु महाराज जी थोड़े मुस्कुराए,
मुझे कहा कागज़ कलम दो;
मझे दिल में अच्छा नहीं लगा,
उन लोगों की बात करने का ढंग देखके, मुझे अच्छा नहीं लगा।
फिर गुरूजी मुस्कुराए
मुझे कहा, कागज़ कलम दो
कहिये आपके क्या सवाल हैं?
बीस सवाल लिखने में पन्द्रह मिनट चली गई।
तब गुरूजी ने कहा
अभी एक-एक सवाल का जवाब पांच मिनट कर के दिया जाए
तब एक सौ मिनट चाहिए
मैं एक मिनट नहीं रह सकता हूँ।
सम्मलेन बर्बाद हो जाएगा, यह ठीक नहीं होगा।
कल आइये प्रेम से बात करेंगे।
कल तो हम नहीं रहेंगे,
गुरूजी उठ गए, बाहर निकल रहे हैं।
तब पांडे साहब कहते हैं, “स्वामीजी!
सिर्फ एक मंत्र सुना दीजिए।
मेरे मन में बहुत अशांति है।
एक मंत्र सुना दीजिए, नहीं तो एक कोई उपदेश दीजिए मुझे;
दिल में मुझे शांति हो जाए।”
तब गुरु महाराज जी चलने लगे रास्ते में
पांडे साहब आप मुझे धोका दे रहे हैं।
नहीं स्वामीजी! मैं धोका नहीं दे रहा हूँ।
सच्ची बात कह रहा हूँ, मेरे मन में बहुत अशांति है।
इसलिए आपके पास बहुत आशा लेकर आया हूँ।
फिर गुरूजी हँस दिए, मुस्कुराए
आप तो मुझे धोका दे रहे हैं।
-किसलिए आप बार-बार बोल रहे हैं? -आप खुद ही बोले मेरे पास
मैं जिसको आखों से देख नहीं पाता हूँ;
हाथ से छू नहीं सकता हूँ, उसका अस्तित्त्व नहीं मानता।
आपने मन को आखों से देखा?
काला रंग का है की पिला रंग का है?
तो देखा नहीं
हाथ से छू लिया? सक्त है की नरम है?
छुआ भी नहीं, देखा भी नहीं; आपका मन है ही नहीं।
उसकी शांति-अशांति की क्या बात हो सकती है..!!
वो कहते हैं, “नहीं स्वामीजी! जब भी हाथ से छुआ नहीं;
आखों से देखा नहीं,
चिंतन रूप क्रिया से मालुम होता है, मन है।”
तब गुरूजी कहा, “देखिये..!!
आप जो सवाल किए, उसका जवाब आप खुद ही दे रहे हैं।
यह जो है, यह आँख की किम्मत क्या है?
कान की किम्मत क्या है?
इनके ऊपर, यह नाशवान इन्द्रियों के ऊपर निर्भर कर के जो अनुभव है वह वास्तव है;
आपके माफिक विद्वान व्यक्ति ऐसा बोलते हैं,
एक झाड़ु की सिखा देकर फोड़ दे सकता हूँ मैं, आपकी आँख;
सारा दृश्य जगत बंद हो जाएगा।
कान के पर्दे को फाड़ दिया जाए, drum को
तब सारा शब्द जगत बंद हो गया।
इतनी नाशवान इंदियों के ऊपर निर्भर करते हैं।
वो जो अनुभव वो वास्तव है,
आपके माफिक विद्वान व्यक्ति ऐसी बात करते हैं, हम कहाँ जाएँगे?
जितने चेतन हैं, ना? चेतन कोई मरने के लिए नहीं चाहते हैं।
किसलिए? वो सत् है, नित्य है;
लेकिन अनित्य शरीर में भगवान को भूल के
माया में फँसकर अनित्य शरीर में मैं बुद्धि करके
उसके अंदर में डर आ गया।
मेरा जन्म हुआ, थोड़े वक्त रहूँगा, मर जाऊँगा डर आ गया।
असल में वो नित्य है, अनित्य की नित्य काल रहने की इच्छा नहीं हो सकती है।
भीतर में हमारी इच्छा है, हमेशा रहेने के लिए;
लेकिन मृत्यु तो एक दिन होगी ही
भीतर में इच्छा किसलिए है? जब मैं अनित्य होता
अनित्य को नित्य काल रहने के लिए कभी इच्छा नहीं हो सकती है।
that desire proves that I’m an eternally existing principle
but not this body.
this is misconception of self
सत् इसलिए नित्य काल रहने की इच्छा है;
चित् इसलिए ज्ञान प्राप्त करने की…
अज्ञान को ज्ञान के लिए इच्छा नहीं हो सकती।
आनंद के अभाव को आनंद के लिए मांग नहीं हो सकती।
सच्चिदानन्द है;
हमेशा रहने वाला ज्ञानमय आनंदमय उसको ही आत्मा कहते हैं।
न जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥
यह शरीर नाश होने से, आत्मा नाश नहीं होगी।
शरीर का जन्म होता है, बार-बार मृत्यु होती हैं।
आत्मा की जन्म-मृत्यु नहीं हैं।
यह तो गीता आप लोग पढ़ते हैं, लेकिन विश्वास करके चलते नहीं।
इसलिए वो नित्य है,
वही जो नित्य आत्मा है, उनको
यह जो शरीर, शरीर चेतनवत् मालूम होता है; चेतन
शरीर चेतन
कैसे चेतन मालूम हुआ?
वही भगवान से.. भगवान हैं
भगवान कौन हैं?
वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम्।
ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते॥
यह कहते हैं, यहाँ पर कहना
ब्रह्मन: त्रिविध स्मृत:
तीन प्रकार की प्रकृति हैं;
तत्त्व विदोंने, किसको तत्त्व कहते हैं?
तत् वस्तु का भाव, अतिन्द्रिय वस्तु के भाव को कहते हैं, तत्त्व।
वही अतिन्द्रिय वस्तु के भाव को जानते हैं, उसको तत्त्व विद् कहते हैं।
तत्त्व विद् किसको तत्त्व कहते हैं? अखंड ज्ञान
Absolute Knowledge, Infinite Knowledge
वो होता हैं, तत्त्व
ऐसा कि पश्चात् दार्शनिक
वो लोग भी यह स्वीकार… मान लेते हैं।
through the process of ascension
हम लोगों का तो आरोह पन्था नहीं है।
but trough descending process
from preceptorial channel you get the knowledge.
that is the Indian way of knowing—दर्शन शास्त्र
दर्शन शास्त्र
दर्शन शास्त्र का synonym ‘philosophy’ नहीं है।
हम को शब्द नहीं मिलता है, philosophy बोल देते हैं।
philo sophia
philo—love of knowledge
empiric knowledge इसको कहते हैं, philosophy.
यह जो प्राकृत इन्द्रियों द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है;
उसको अवलंबन करके हम परतत्त्व तक पहुँचाना चाहते हैं
वहाँ पर वो लोग भी लिखे,
जो philosophy होती है,
reasoning and argument
to get the knowledge of the ultimate reality
with the help of reasoning and argument, you should consult oxford dictionary
फिर हमारे यहाँ पर कहते हैं, reasoning or argument जो है;
वो भगवान की अपरा प्रकृति से है- मन, बुद्धि
मन, बुद्धि के अतीत है;
मन ससीम है,
finite being, human being is finite being; his intellect is finite
his mental capacity is finite,
anything determined by the mental capacity; by the mind and intelligent
and sense organs will be finite
हमारा शरीर जब ससीम है
बुद्धि भी ससीम है, मन भी ससीम है;
इन्द्रिय शक्ति भी ससीम है;
इसलिए ससीम वस्तु
असीम वस्तु को निर्धारण नहीं कर सकती।
reality is reality, he is always existing.
it will not be produced
manufactured in the factory of human intellect
or mental capacity.
वो mental, मन के कारखाने में
बुद्धि के कारखाने में भगवान तैयारी नहीं हो सकते।
मन, बुद्धि तो प्राकृत हैं।
जब manufacture होगा, तब वो finite हो गया।
reality is always existing; you have to find out how to see the truth.
दर्शन शास्त्र you are not to produce it.
if reality is reality, it is always existing.
इसमें दर्शन शास्त्र and philosophy are not synonymous
but हम लोगों को मिलता नहीं बोल देते हैं;
वही एक philosophy of bhakti
हम को एक subject रखा Holland में subject—philosophy of bhakti
यह philosophy of bhakti, philosophy का
क्या अर्थ होता है? दर्शन शास्त्र से क्या फरक है?
एक घंटा उसी में चला गया।
पहले समझना होगा भारतीय दर्शन शास्त्र क्या है?
तब तो समझेगा इसलिए
वही भगवान
वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम्।
अखंड ज्ञान जो हैं;
वो तत्त्व हैं, कोई उसको ब्रह्म कहते हैं;
कोई परमात्मा कहते हैं, कोई भगवान कहते हैं,
ज्ञानी लोग उसको ब्रह्म कहते हैं, निराकार निर्विशेष ब्रह्म
योगी लोग परमात्मा कहते हैं, भक्त लोग भगवान कहते हैं।
भगवान जो है, वो all comprehensive idea
ब्रह्म होता है ‘ब्रुह्त्वात् ब्रुह्णत्वात् इति ब्रह्म’
बृहत् से बृहत् एक गुण हो गया।
भगवान; भगवान शब्द का मतलब होता है,
भगवान को प्रणाम कर रहा है, ना?
‘भग’ ‘वान’; भग मतलब शक्ति, वान का मतलब युक्त
शक्ति-युक्त तत्त्व को भगवान कहते हैं।
ऐसे तो विष्णु पूराण में छः, मुख्य शक्ति के बारे में लिखा है।
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः।
ज्ञान-वैराग्योश्चैव षण्णां भग इतीङ्गना।। (विष्णुपुराण 6.5.47)
यह समग्र ऐश्वर्य, तमाम ऐश्वर्य
तमाम वीर्य, तमाम यश, तमाम ज्ञान, तमाम रूप
तमाम वैराग्य जो तत्त्व में है, उसको कहते हैं भगवान।
all these opulences in totality exist in Bhagavan.
not only six-fold, infinite potencies
He is the possessor of infinite potencies
so He possesses infinite potencies ‘asim’
सर्वशक्तिमान
उनको भगवान कहते हैं, भगवान
बृहत् से भी बृहत् हैं, ब्रह्म
अणु से भी अणु परमात्मा हैं।
मैं आत्मा हूँ;
ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
आत्मा बहुत अणु, परमाणु है
उसके अंदर में अन्तर्यामी रूप में परमात्मा हैं, उससे भी अणोः अणियान हैं
अणु से अणु परमात्मा हैं।
भगवान कहने से
बृहत्त्व, अणुत्त्व, मध्यमत्त्व सर्वत्र तमाम भाव आ जाते हैं।
भगवान
there is no equivalent word of Bhagavan
in anywhere in the world
it may be up to paramatma or brahma
भगवान कहने से all comprehensive idea of the ultimate reality
सिर्फ बृहत्त्व नहीं, अणुत्त्व नहीं, मध्यमत्त्व नहीं तमाम
इसलिए कहते हैं, वही
जो ब्रह्म, परमात्मा, भगवान हैं
उनके अंदर में भगवान को प्रणाम कर रहा हूँ।
सर्वशक्तिमान जो भगवान
जो अभी मेरी मृत्यु मेरे सामने में है।
अभी एक मुहूर्त के बाद मर जाऊँगा.. उस वक्त
जो आकर मेरी रक्षा कर सकते हैं; मैं उनका सहारा ले रहा हूँ।
किसी देव-देवि का नहीं
इसलिए यहाँ पर कहते हैं;
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
यह सब चेतनवत् हो गया
कैसे चेतनवत् हुआ?
अभी देखने में वैज्ञानिक लोग
इसको मानेंगे नहीं, वैज्ञानिक लोग
biology में क्या लिखा है?
अभी यह चश्मा मैं देख रहा हूँ।
यह चश्मा रौशनी के माध्यम से मेरी आखों में आ गया।
आखों में एक रेटिना है,
रेटिना में reflection हुआ
और शरीर में दो किस्म की nerves हैं;
sensory nerve, motor nerve है
sensory nerve में sensation होता है, motor nerve से movement होती है।
वही sensory nerve वो subtle process brain में ले गई तब देखना होता है।
तब biologist कहेंगे;
इसमें आत्मा-परमात्मा की क्या जरुरत है?
आत्मा-परमात्मा की जरुरत ही नहीं है।
हम लोग तो यह science, विज्ञान से दिखा दिया।
जब यह subtle process brain में जाएगी तब देखेंगे।
यह reflect हुआ, तब दिखाई देता है।
लेकिन phycologist कहते हैं,
जो brain में जाने से भी हम देखते नहीं।
phycology पढ़ के देखिये, कैसे?
एक व्यक्ति रास्ते के बगल में
एक कमरा है, बैठ के वो एक दोस्त को बोल दिया।
देखो!! वो दोस्त बोल दिया उनको
देखो!! मेरी शादी है, कल तुम्हारे यह रास्ता से मैं जाऊँगा procession लेकर
तब तुम घर से निकल के procession में सामिल होना।
तब procession आ गया।
लेकिन वो novel पढ़ रहा है, बहुत interesting
तब आवाज हुई, वो आँख से देखा कि कोई आवाज हो रही है।
लेकिन उनका ध्यान दूसरी तरफ है।
वो picture तो भीतर में गया;
reported हुआ, mind is somewhere else
इन्द्रियोंभ्यो परः मन
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥ गीता में लिखा
इन्द्रियों से सूक्ष्म है मन
मन से सूक्ष्म है बुद्धि, बुद्धि से सूक्ष्म है; आत्मा
जो वो मन में नहीं जाता है, अभी यहाँ पर सब बैठकर सुन लिए।
जब अध्यापक बोले, गुरूजी बोले, क्या सुना? बोलो
स्वामीजी!! मेरा मन दूसरी तरफ था।
कान ठीक है, आप फिर बोलिए;
मेरा ध्यान दूसरी तरफ था।
इसलिए मन में नहीं जाने से आप सुनते भी नहीं, देखते भी नहीं;
मन में जाने से भी होता नहीं;
मन के बाद बुद्धि, decisive faculty; यह किताब है,
यह ऐनक है, यह माइक है,
यह जो decision करती है, वो है बुद्धि
और बुद्धि में चेतनता आती है, आत्मा से
लोहा ऐसे तो गरम नहीं है।
जब आग के सामने में रख देंगे, लोहा लाल हो जाता है।
वो लोहा के जो छुएगा उसको जला देगा।
जब आग के बाहर रहेगा तब वो भी ठंडा हो जाएगा।
इसी प्रकार चेतन जो आत्मा है, आत्मा का
परमात्मा जो भगवान हैं; परमेश्वर उनसे भी सब चेतनवत् हुआ।
जो कुछ हो समय हो गया।