हमारे गुरुवर्ग ने हमें निर्देश दिये है कि यदि संभव हो, श्रेष्ठ वैष्णवों के संग में प्रतिदिन श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करें। साधुओं से शास्त्र श्रवण को प्रधानता दी गयी है। दामोदर मास में,श्रीमद् भागवतम् के 8 वे स्कन्द से गजेंद्र मोक्ष लीला का पाठ करना अत्यंत मंगलकारी है। गजेंद्र मोक्ष लीला हमें भगवान में पूर्ण शरणागति की शिक्षा देती है।
ततो गजेन्द्रस्य मनोबलौजसां
कालेन दीर्घेण महानभूद् व्यय:।
विकृष्यमाणस्य जलेऽवसीदतो
विपर्ययोऽभूत् सकलं जलौकस:॥
एक हजार साल तक लड़ाई की,
लड़ाई करके, अभी
गजेन्द्र की
मन की जितनी ताकत है,
शरीर की ताकत है,
और इंदियों की जो ताकत है;
वो सारी ताकत नष्ट हो गई, wasted
by fighting with the crocodile,
formidable crocodile
mental energy, physical energy
and all vigor of the sense organ had been wasted
लेकीन जो पानी के अंदर में है,
पानी के अंदर में जानवर है,
crocodile है।
ग्राह है, ग्राह का उल्टा हो गया।
उसके शरीर का बल,
मन का बल, इन्द्रिय का बल बढ़ गया।
वो तो पानी का ही तो है, उसको खाना मिलता है, सब कुछ मिल रहा है।
उसका उलटा हुआ, reverse
just the reverse of elephant
in that crocodile
his mental power, his physical power
and power of the his sense organ increased tremendously
इत्थं गजेन्द्र: स यदाप सङ्कटं
प्राणस्य देही विवशो यदृच्छया।
अपारयन्नात्मविमोक्षणे चिरं
दध्याविमां बुद्धिमथाभ्यपद्यत॥
देही (देहधारी) सः गजेन्द्रः
इत्थं (एवं प्रकारं) यदृच्छया (दैववशात्)
विवशः (ग्राहवशः सन्)
यदा आत्मविमोक्षणे
(तस्माद ग्राहत् आत्मानः स्वस्य विमोक्षणे विमोचने)
अपारयन् (असमर्थः भूत्वा)
प्राणस्य संकटं च (मरणभयं) आप (प्राप, तदा)
चिरं (दीर्घकालं कथं
ग्राहात् मम मुक्तिः स्यादिति)
दधौ (चिन्तितवान्) अथ (अनन्तरम्)
इमां (वक्ष्यमाणां) बुद्धिम् अभ्यपद्यत (कृतवान्)
जो देहधारी गजेन्द्र है,
दैव से इस प्रकार मुसीबत में आ गया।
लड़ाई की हजारों साल
लड़ाई करते-करते अपने को बचा ने के लिए, हज़ार साल चले गए;
अभी जब अपना सामर्थ और नहीं रहा;
सारा जितना इन्द्रिय-बल, शरीर-बल, मन-बल सब क्षय हो गया।
सामने में मृत्यु देख रहा है;
इधर में लड़ाई भी कर रहा है और चिंता कर रहा है।
दीर्घ काल चिंता कर रहा है;
कैसे मैं बच सकूँ?
उसके बाद आखिर में इस प्रकार स्थिर किया;
क्या स्थिर किया?
न मामिमे ज्ञातय आतुरं गजा:
कुत: करिण्य: प्रभवन्ति मोचितुम्।
ग्राहेण पाशेन विधातुरावृतो-
ऽप्यहं च तं यामि परं परायणम्॥
इस प्रकार विचार हो गया
अभी तो देखने में मालुम होता है; गृहस्थ है, इतनी स्त्री हैं, इतने पुत्र हैं, सब हैं
और इतनी लड़ाई की।
यह पहले भक्त था
चिंता कर सकते हैं?
लेकिन वो भक्ति, जो पहले भजन करते थे वो प्रकाशित हो गया।
भक्ति कभी नाश नहीं होती,
(यदा) आतुरं (ग्राहवसेन व्याकुलं माम् इमे ज्ञातयः गजाः (एव)
मोचितुम् न प्रभवन्ति (तदा) करिण्य: (स्त्रियः) कुत:?
(कथं प्रभवेयुः! न कथमपि इत्यर्थः।)
विधातुः (देवस्य) पाशेन (पाशरूपेण)
ग्राहेण आवृतः (निबद्धः)
अहम् अपि च (न प्रभवामि, अतः)
परायणम् (परेषाम् ब्रह्मादीनाम् अपि अयनं शरणं आश्रयं)
परं (श्रेष्टं) तं
(एव विधातारं) यामि (ब्रजामी)
यतः यत् संकल्पात् अहं ग्राहवशः
तस्य एव शरणम् कर्त्तव्यमिति भावः।।
ऐसा है,
बुद्धि द्वारा क्या चिंता की?
एक जगह लड़ाई कर रहा है, एक जगह चिंता कर रहा है।
अपनी जो ज्ञाति है, उन लोगों ने भी चेष्टा की; मैंने भी अपनी चेष्टा
जितनी है, सब की
अपनी चेष्टा से अपने को मुक्त नहीं कर पाया।
और जो रिश्तेदार हैं, वो भी नहीं कर पाएँ
और स्त्री के बारे में क्या कहेंगे?
एक है विधाता
विधाता का जो विधान है;
वो ग्राह रूप से आ गया, आकर आवृत कर लिया।
इससे अभी उद्धार प्राप्त करने के लिए,
मैं सर्वश्रेष्ट आश्रय
जो परमेश्वर उनकी शरण ग्रहण करता हूँ
मुसीबत होने से ही
सब भगवान के चरणों में आ जाते हैं, ऐसा नहीं।
न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा:।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता:॥
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥
उसके बाद यह है
वहाँ पर बोल दिया
शरणागत होने से भगवान की कृपा होती है,
लेकिन हर एक शरणागत नहीं हो सकता है;
जो दुष्कृतिशाली व्यक्ति है,
दुष्कृतिशाली, वेद निषिद्ध
जो काम करते हैं, पाप आदि करते हैं
गंदा काम करते हैं
उनको कभी इस प्रकार
भगवान में सहारा लेने की इच्छा नहीं होगी, आसुरिक प्रवृति है;
आसुरिक प्रकृति चार प्रकार, यहाँ पर बताई
एक बोले दुष्कृतिशाली
doing activities or doing sins
or crime and anything
which are prohibited by the Vedas, in the scriptures
they are ‘duṣkṛtiśāli’—mischief person
they are the demonian spirit
आसुरं भावमाश्रिता:
those who have got that demonic spirit
they will not submit to Me
here it is clearly stated
दुस्कृतिशाली
और मूढ़
मूढ़ किसको कहते हैं?
मनुष्य के अंदर में
जो नीति नहीं मानते हैं, दुर्नीति करते हैं;
उनको हम लोग ख़राब कहते हैं।
जो एक सभ्य होता है, वो देखता है नीति नहीं मानाने से सुख में
हम लोग संसार में नहीं रह सकते।
हमारा घर हमारा, उनका घर उनका
हमारी स्त्री हमारी, उनकी स्त्री उनकी
तब तो शांति में रह सकते हैं।
इसलिए नीति माननी चाहिए।
ईश्वर मानने की कोई जरुरत नहीं है।
ईश्वर मानने की कोई जरुरत नहीं, भक्ति विनोद ठाकुर ने व्याख्या की।
वो कहते हैं, यह होता है ignorant
असल में…
वो हमारे स्वामी महाराज बोले
fool number one
कोई आया स्वामी महाराज के पास
आकर बोल दिया ‘I don’t believe God’
‘Who have given you the power to say I don’t believe God?
If that power is withdrawn, can you say?
How long will you stay, live in this world?
when will vanity will go?
ऐसा दंभ करके, घमंड से हाँ मैं भगवान को नहीं मानता।
हम तो देखा, बचपन में देखा
नहीं मानता हैं, नहीं मानता हैं तो देख लिया
अभी भी मुझे याद है।
जब उधर से आ जाता है,
धक्का आ जाता है;
तब सब भगवान का नाम करते हैं, मैं खुद देखा।
किसलिए? वो ग्वालपाड़ा में वहाँ पर
तब मैं तो बच्चा था उस वक्त
वो हमारे चाचा और यह सब बड़े-बड़े जो हैं;
वो जाते हैं, वहाँ पर train line rail
rail line नहीं थी,
steamer थी, steamer, boat
by steam-boat
I had seen, I saw steam-boat.
but not trains
boat वो जाकर वहाँ पर cross करके धुबुरी जाते हैं।
वहाँ से train से जाते हैं।
पहले कोलकाता में जाकर वहाँ पर पढ़ते हैं, पढ़ के आते हैं।
आए और खिलौना ले आये,
train का खिलौना
मैं कहता हूँ, मैं भी train में बैठूँगा
-train में -हट..
अभी तू बच्चा है, जा…
अभी नहीं
मेट्रिक पास करेगा उसके बाद
जभी जाता हूँ, तब भगा देते हैं।
क्योंकी बच्चे की कोई किम्मत ही है नहीं।
जब बड़ा हुआ, समझा बच्चा होने से ही ठीक था।
बच्चा था (उस) वक्त बड़ा दुःख हुआ था,
कोई हमको किम्मत नहीं देते हैं!
वो अवस्था अच्छी है
तो मुझे बहुत दुःख हुआ, माताजी के पास सोया;
खटिया में एकदम सो गया।
रात बारा बजे कि साड़े बारा बजे ऐसा कुछ
चौकी हिल रही है, bed-straight is moving
ऐसे हिल रही है, चौकी
मैं समझा मैं रेलगाड़ी में उठ गया।
भीतर में चिंता थी ना, रेलगाड़ी में उठने की
ऐसा.. आँख खोलता नहीं, मैं तो रेलगाडी में बैठा।
थोड़े वक्त के बाद माताजी बैठ के हरिबोल.. हरिबोल..
हरिबोल किसलिए कहते हैं?
क्या होता है? यह तो अच्छा है
बाहर से हम लोग को -ए… बाहर आ.. बाहर…
एक तो अलमारी कहाँ पर गिर गई, शीशेवाली अलमारी
जहाँ पर वो हॉस्टेल है, ना? वहाँ
घर बड़ा था
तो अभी वो
गिर गई,
खींचकर ले गए बाहर तब आँख खोलनी पड़ी।
मैं तो खोल के देखा ओ..रे…बा.. जितने हैं
सब हरिबोल.. हरिबोल.. एक बात नहीं है।
और जो मुसलमान लोग है;
अल्ला हू अकबर, अल्ला हू अकबर, अल्ला हू अकबर, शंख
एक व्यक्ति बाद नहीं था
ऐसा करता है, तो हम
वहाँ पर तो टीन के घर हैं ना
जल्दी से गिर जाते हैं,
थोड़ा कुछ हुआ, फिर हो गया
तब मैं पिताजी से बोला;
इतना भय का कारण क्या है? यह तो अच्छा है
यह हिल रहा है, अच्छा है
नहीं.. नहीं.. इसको भुचालन कहते हैं।
भुचालन में थोड़ा-सा गिर, मकान गिर जाते हैं, आदमी मर जाते हैं।
सब पानी हो जाता हैं, इतना बहुत कुछ समझाया।
तब मुझे डर हो गया भुचालन ऐसा है।
लेकिन फिर देखा, जब वो धक्का आया भगवान से
तब कोई भगवान को नहीं मानेंगे;
उस वक्त हरिबोल.. हरिबोल.. अभी तो
तब हरिबोल अपने आप आ जाएगा।
ऐसा नहीं
हम लोग समझते हैं
अभी न मां दुष्कृतिनो मूढा:
नीति की भित्ति है, भगवान
भगवान की बात छोड़ देने से नीति की कोई सत्ता ही नहीं रहती है।
नीति-दुर्नीति यह कैसे निर्णय होगा?
हम लोग तो अलग-अलग नीति-दुर्नीति कर सकते हैं।
लेकिन जो कारण से भगवान जिनसे सब जीव आए हैं।
उनकी प्रिती के अनुकूल
और उसके प्रतिकूल जो होता है, वो होता है—नीति-दुर्नीति
विचार करने के लिए
ऐसा भी जब देखें
अभी,
‘स्व-कर्म फल भूक पुमान’—जीव अपने-अपने कर्मों का फल भोग करते हैं।
यह गीता जी में कृष्ण बोले; अभी,
एक आदमी देखता है;
बहुत अच्छा आदमी है, लेकिन गरीब है
पैसा मिलना मुस्किल है।
और एक आदमी देखा, अच्छा आदमी नहीं है लेकिन बहुत रुपए आते हैं।
अभी, उसकी संपत्ति कैसे खाऊँ
you can get the consistency
In these world, one person
has got wealth everything but his character is bad
and another is very
polite and all qualities are there he is being poor he can’t maintain his family
इसमें अभी कैसे इसका
समाधान करेंगे?
समाधान होता है, ऐसे
जो एक पहले
कुछ ऐसा काम किया, जिससे इस प्रकार की हालत में आ गया।
वो पहले बहुत अच्छा काम किया इसलिए दुनिया की दौलत आ रही हैं।
अभी जो गंदा काम किया, उसका फल बाद में मिलेगा।
फल को नियंत्रण करनेवाले भगवान हैं।
फल अपने हाथ में नहीं है।
at the proper time he will get
इसलिए जब वही भगवान को नहीं माने,
नीति खड़ी नहीं हो सकती है।
नीति की बुनियाद है, भगवान
और भगवान को नहीं माननेवाला;
जगत में ऐसा कोई नहीं है, मनुष्य हो कि जानवर, चिड़िया सब मानते हैं
मेरे गुरु महाराज जी ने एक दफे समझाया
तब कृष्णनगर.. कृष्णनगर है, ना? नदिया जिले का जो है
district town वहाँ पर मठ है।
दो मंजिल में बैठकर गुरूजी dictation कर रहे हैं; मैं लिख रहा हूँ।
एक नौजवान लड़का आ गया;
आ गया, वो सीडी में खड़ा होकर
बात कर रहा है, गुरूजी से
स्वामीजी! आप लोग साधु होकर दुनिया को धोका किसलिए देते हैं?
ईश्वर को किसीने देखा हैं? किसीने देखा नहीं!
ईश्वर का नाम करके पेट पूजा करते हैं, अपनी और
दूसरे व्यक्ति को, मुर्ख व्यक्ति को exploit कर रहे हैं
ऐसा बोलने लगा
तब गुरूजी कहते हैं, गुरूजी तो सहनशील है
तुम वहाँ पर खड़े होकर किसलिए? भीतर में आ जाओ..!!
यहाँ पर बैठो, बात करो;
भीतर में नहीं आ रहा, दूर से बात कर रहा है
सिर्फ अफीन पिलाके नशाकरा के सब को आप लोग ऐसा कर रहे हैं।
धोखा दे रहे हैं।
गुरु महाराज जी आखरी में बोले;
तुमको देखकर मालुम होता है, तुम कोई विद्यार्थी हो
हाँ!!
-कौनसी कॉलेज में पढ़ते हो? -कृष्णनगर कॉलेज में
-कृष्णनगर कॉलेज में क्यों भर्ती हुए?
-वहाँ के जो professors बहुत विद्वान हैं।
इसलिए पिताजी ने मुझे वहाँ पर भर्ती करवाए।
घर में बैठकर पढाई नहीं हो सकती?
विद्वान व्यक्ति का फायदा किसलिए?
तब गुरूजी कहते हैं, तुम ने ईश्वर नहीं माना?
तुम तो शिक्षित व्यक्ति हो, ईश्वर किसको कहते हैं?
जिनके अंदर में ईशिता है
dominating power है
who is Ishwar?
the entity which has got
dominating power and wealth; possesses wealth is called Ishwar.
भगवान, ‘भग’ ‘वान’
भग means opulence; वान
one who possesses
six fold opulences we say but infinite opulences
सर्वशक्तिमान भगवान
वही तुम तो
कृष्णनगर के कॉलेज के अध्यापक विद्वान हैं;
वहाँ जाकर तुम अपने सिर को झुकाया।
किसलिए? विद्या विषय में ऐश्वर्य है;
जिसको धन की जरूरत है,
यहाँ पर भगवान के पास प्रणाम करने में उनकी
इच्छा नहीं होती है;
लेकिन धनी लोगों के पैर चाटते हैं, पैसों के लिए;
अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति है, उनके पास जाते हैं शिक्षा के लिए;
कोई वस्तु प्राप्त करने के लिए जो दे सकता है, उसी के पास जाते हैं
जो नहीं दे सकता, उनके पास कोई नहीं जाता है।
ऐसा तो हमारे मठ के साधू भी गए;
कहाँ? चंडीगढ़ में
दारासिंग आया, एक कुस्ती लड़ने वाला दारासिंग
तो हम तो दूर से देखा, वो स्वयं चला गया उनके पास
वो कुस्ती शिक्षा करने के लिए
दारासिंग
वो दारासिंग के पास submit किया, संन्यासी होकर;
कुस्ती लड़ने वाला है
तब उनको पूछा, वो कोई राजनीति दल का leader है।
वो पैर में कुछ ऐसा-ऐसा
पैर में ऐसा-ऐसा करते हैं; ‘पैर में तुम्हे क्या हुआ?’
-गोली लग गई; -किसलिए?
नेता का हुकुम
वही नेता का हुकुम के अनुसार काम करना पड़ता है; जान दे देंगे।
नेता भी आदमी है;
तुम भी आदमी हो, नेता के हुकुम पर अपनी जान क्यों दोगे?
नहीं हमारे नेता की जो शिक्षा है, वो जो शिक्षा ग्रहण करें,
समाझ का कल्याण, सबका कल्याण होगा इसलिए
नेता तुम्हारा ईश्वर नहीं हुआ?
झूठ किसलिए बोलते हो, ‘ईश्वर नहीं मानते हो?’
कौन नहीं मानता हैं?
चींटी भी मानती है, बड़ी चींटी आने से छोटी चींटी रास्ता दे देती है।
कुत्ते सब झगडा करते हैं ना?
जब बड़ा कुत्ता आ जाता है; तब छोटा कुत्ता
सो जाता है, surrender कर देता है।
ऐसा प्राणी भी नहीं है, जो ईश्वर को नहीं मानते हैं।
ईश्वर को नहीं मानने से ईश्वर नहीं खाके मर जाएगा?
ईश्वर की कृपा से तुम वंचित रहोगे। He will not lose anything
उनका आश्रय लेने से वे तुम्हारे रक्षक-पालक बन जाएँगे।
छोटे-छोटे ईश्वर को हम मान सकते हैं,
उनके पास शरणागत हो सकते हैं और परमेश्वर हुआ तो..
शरणागत होने से हम को शर्म लगती है।
नसीब ख़राब है, यहाँ पर देखिये
वही जो
दुष्कृत, मूढ़, उसके बाद नराधम
नराधम
जो नराधम नीति के अंग रूप से कहते हैं भगवान को।
नीति के अन्दर
भगवान होते हैं, नीति के कारण रूप से है।
नीति के अंग नहीं है, जैसे भगवान के चरित्र को भी वे लोग…
उसकी criticism करते हैं।
criticize करते हैं, यह विचार लेकर
He is a component part of… nīti is a main thing
and bhagavan is subordinate to it like that
यह नहीं है, यह नराधम कहते हैं इसको
और जहाँ पर भगवान की शक्ति…. भगवान सर्वशक्तिमान
वो भगवान ब्रह्म परमात्मा नहीं भगवान सर्वशक्तिमान
सर्वशक्तिमान भगवान उनकी एक शक्ति का अंश जीव है।
कोई सर्वशक्तिमान भगवान को मानते हैं
और जीव भगवान की शक्ति का अंश है;
उनका नित्य दास है।
भगवान की बहिरंगा शक्ति से आवृत होकर, यहाँ पर दुनिया में आ गया है।
इस प्रकार विचार लेकर जो चलते हैं।
वो होता है
वहाँ पर कहते हैं
माययापहृतज्ञाना माया द्वारा ज्ञान अपहृत हो गया
जिस लिए भगवान सर्वशक्तिमान हैं
और भगवान की शक्ति का अंश जीव है,
भगवान का नित्य दास है, यह ज्ञान नहीं है।
वास्तव में स्वरुप में हरेक जीव, भगवान का नित्य दास है।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता:
भगवान उवाच
भगवान जो है वो कथा बोल रहे हैं।
उनका स्वरुप है, जब चरम में स्वरुप नहीं हो तो दुनिया में स्वरुप कहाँ से आ गया?
नास्तित्त्व से अस्तित्त्व होता है?
अस्तित्त्व से अस्तित्त्व होता है।
जब यह स्वरुप देखते हैं, कारण में भी स्वरुप है।
वो सिर्फ ऐसा नाश होनेवाला स्वरुप नहीं है, अविनश्वर
इसलिए चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥
चार प्रकार के व्यक्ति मेरा भजन करते हैं।
यह हमारी गीता में जो भक्ति विनोद ठाकुर ने लिखा,
वही भक्ति विनोद ठाकुर की व्याख्या आप लोग,
ग्रन्थ को देखकर अच्छी तरह से समझने की कोशिश करना;
यहाँ पर विस्तार रूप से बोलना मुश्किल है।
तो इधर कहते हैं, सुकृतिशाली व्यक्ति
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी
संसार में कष्ट पाकर भगवान का
भजन करने को आते हैं, जब सुकृति रहे
दुस्कृतिशाली नहीं
जिज्ञासु होकर inquisitiveness
by being afflicted by the affliction of the world
they come to worship
when they have got previous good deeds, impressions of previous good deeds
they must have served Krishna or His person associate or devotees
accumulation of those impressions will have
impact on his soul and the soul will be awaken then he will serve
सुकृतिशाली व्यक्ति
सुकृतिशाली व्यक्ति जब दुःख पाते हैं, तब भगवान का भजन करते हैं
सुकृतिशाली व्यक्ति जिज्ञासुलोग भजन करते हैं
और अर्थार्थी होकर
धन संम्पद इत्यादि जो कुछ प्राप्त करने के लिए भगवान का भजन करते हैं
और जो तत्त्वज्ञ है, भगवान सर्वशक्तिमान हैं
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ:॥
वो होता है, असल ज्ञानी
बहु जन्मों के बाद यह ज्ञान होता है।
ब्रह्म परमात्मा सभी के कारण भगवान हैं।
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम:।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम:॥
क्षर, अक्षर से भी श्रेष्ट हैं
क्षर—जीव, उससे भी श्रेष्ठ है,
अक्षर—ब्रह्म, परमात्मा से भी श्रेष्ठ हैं
इसलिए उनको पुरुषोत्तम कहते हैं
वही पुरुषोत्तम कृष्ण, गीता में ही लिखा है, गीता पढ़ते हैं
वे पुरुषोत्तम कृष्ण सभी के कारण हैं, सिर्फ
चित् भाव ज्ञान, केवल ज्ञान जो है, वो होता है
चिन्मय भाव लेकर जाते हैं वे उनको ब्रह्म देखते हैं
सत् चित् भाव लेके जाते हैं वे परमात्मा देखते हैं
सच्चिदानंद भाव लेकर जाएँगे तो भगवान देखेंगे
all comprehensive idea
वही उसी प्रकार जब बुद्धि होती है,
तब सुकृति से, इनकी पहले की सुकृति है;
कष्ट होने से ही भगवान का भजन करेगा, ऐसा नहीं है
जिनकी सुकृति है, वो भजन करेगा
दुकृतिशाली कभी भजन नहीं करता है।
हम देखा हमारे वो
वहाँ पर हाजरा रोड में मठ था, एक नंबर हाजरा रोड
वहाँ पर, वैष्णव लोग तो कृपालु है, कोई दुर्भिक्ष हुआ था
वहाँ पर, बंगाल में दुर्भिक्ष हुआ था।
तब मठ से खिचड़ी बनाके सभी को खिलाते थे।
तो अभी एक नौजवान लड़के को देखा
देखकर उसको बोला
तुम क्यों भिक्षा कर रहे हो, तुम यहाँ पर रहो
उसका तो कोई आश्रय नहीं है।
यहाँ पर रहो, नियम; जो बोलते हैं, वो (बोलता है) हाँ
उसको तो आश्रय मिलना है।
यहाँ पर यह मछली, अंडा, गोष्ट, यह सब नहीं खा सकते हैं।
और मादकद्रव्य सेवन नहीं कर सकते हैं।
प्रसाद सेवा करो; प्याज, लहसुन यह सब नहीं खा सकते हैं।
और यहाँ पर हरिनाम करो, जो बोलता है; हाँ हाँ…
तब उसको ले आए।
दो-तीन महीने के बाद उसका शरीर बहुत पुष्ट हो गया।
हर रोज हरिकथा में बैठना।
वो हरिकथा में बैठता नहीं;
खाने के वक्त आ जाता है।
तुम हरिभजन करने के लिए आये हो?
क्यों हरिकथा में बैठते नहीं?
हरिकथा में बैठने से मेरे सिर में दर्द होता है।
अच्छा नहीं लगता है, प्रसाद दो अच्छा-अच्छा प्रसाद दो, वह बात अलग है।
धीरे-धीरे-धीरे-धीरे… वो
वो छोड़ के दूसरी जगह में नोकरी लेकर भाग गया।
उसी प्रकार है;
मुसीबत में रहने से भी भगवान का भजन नहीं करता है।
और कोई ऐसा किया चैतन्य मठ में, उसको स्थान दिया, सब कुछ दिया।
वो बिस्तर लिया, वहाँ का wall-घडी लेकर, चोरीकर के भाग गया।
भजन हो गया
मठ की बड़ी घडी थी
वो घडी ले लिया।
अपना बिस्तर भी बाँधकर ले लिया, लेकर भाग गया।
इसलिए उस प्रकार नहीं;
सुकृतिशाली व्यक्ति
उसके अंदर में इस प्रकार प्रवृत्ति आती है
पहले भगवान का भजन किया, इसलिए
य: कश्चनेशो बलिनोऽन्तकोरगात्
प्रचण्डवेगादभिधावतो भृशम्।
भीतं प्रपन्नं परिपाति यद्भया-
न्मृत्यु: प्रधावत्यरणं तमीमहि॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे ब्रह्मसूत्रभाष्ये
पारमहंस्यां संहितायां वैयासिक्यामष्टमस्कन्धे
गजेन्द्रोपाख्याने द्वितीयोहध्यायः।
य: कश्चन ईशः (दुर्ज्ञेयप्रभावः
भगवान) बलिनः (बलशालिनः)
प्रचण्डवेगात् (प्रचंडः भयंकरः वेगः यस्य तस्मात् दुःसहवेगात्)
अभिधावतः (स्वाभिमुखमागच्छतः)
अन्तकोरगात् (अन्तं करोति इति अन्तकः मृत्युः
सः एव उरगः महासर्पः तस्मात्) भीतं (भयाक्रान्तं)
प्रपन्नं (शरानापन्नं जनं) भृशं (निरन्तरम्)
परिपाति (रक्षति)
यद्भयात् (यस्य अमितप्रभावस्य भगवतः भयात्)
मृत्युः (अपि) प्रधावति (तदादीष्टकर्मणि प्रवर्त्तते)
तं (इशम्) अरणं (शरणम्)
ईमहि (व्रजेम, प्रप्नुयाम)
जो दुर्ज्ञेय प्रभावसंपन्न भगवान,
जो अत्यंत बलिष्ट प्रचण्डवेग में धावमान अन्तकरूप महासर्प है—
जो मृत्यु भयंकर है, अभी आ गई है।
एक मुहूर्त में, एक मुहूर्त के बाद आ गई है, ख़त्म कर देगी
उस अवस्था में भी जिनके चरण में शरणागत होने से,
वे भगवान आकर हमको रक्षा करते हैं
उनके चरण में मैं शरणागत होता हूँ।
साधारण देव-देवी के नहीं
परमेश्वर हरेक हालत में रक्षा कर सकते हैं।
मृत्यु जिनसे डरती है;
मृत्यु जार भये पलायन करे।
इसलिए हम लोगों को हमारे परम गुरूजी क्या कहते थे?
कि देखो,
एक बड़ा आदमी प्रभुपाद के पास आया
एक railway officer है;
वो प्रभुपाद के पास आकर बोला
कि आपको पैसो की जरुरत है, मैं तो नोकरी छोड़कर आ गया।
मैं नोकरी में जा सकता हूँ, जाकर रूपए भेज सकता हूँ।
नहीं.!! नहीं..!! रूपए के लिए नहीं, वो रूपए नहीं चाहिए।
भिक्षा कर के हरेक के पास से कुछ ले आओ!! हरिकथा बोलके ले आओ!!
उनको भगवान के पास ले आने के लिए
उनकी आसक्ति की वस्तु भगवान की सेवा में लगाने से उनका कल्याण होगा।
इसलिए हम भेजते हैं; रूपए के लिए नहीं
जाओ!! तुम हर घर में जाकर
हमारे वहाँ पर मुष्टि-भिक्षा ले आते हैं।
जैसे गरीब आदमी भी दे सकते हैं, एक मुठ्ठी रख दो
जो चावल खाते हैं उससे एक मुठ्ठी रख दो
वो लोग आते नहीं मठ में, मठ में आते नहीं।
लेकिन वही एक मुठ्ठी रख देते हैं, वो ले आते हैं
वो लोग मालुम करते हैं, भिखारी है
भिखारी तो नहीं है, कोई-कोई प्रधान-प्रधान व्यक्ति, भिखारी होकर जाते हैं।
ता कि उनसे ले आकर सेवा में लगाते हैं।
क्या होता है? अभी जो ब्रह्मचारी ने सेवा की
वो दो साल करने के बाद उनको कोई ओर जगह में भेज दिया।
वहाँ पर ओर वह ब्रह्मचारी नहीं आते हैं, ब्रह्मचारी कहते हैं; यहाँ जन्माष्टमी है,
यह है.. आप आईए.. – अभी नहीं जाएँगे, बाद में जाएँगे।
तब ब्रह्मचारी जब नहीं आया,
ब्रह्मचारी को देखते-देखते ब्रह्मचारी में उनकी आसक्ति हो गई।
यह जो कहाँ है? यह क्या है, वो चावल लेने के लिए क्यों नहीं आता है?
तब मठ में आ गया, मठ में आने की इच्छा नहीं है; कितना निमंत्रण देते हैं
आकर गुरूजी को देखा, फिर
विग्रह देखा, देखने के बाद सोचा अच्छा स्थान है।
आसते-आसते क्या हुआ? वो
गुरूजी का चरणाश्रय कर के शिष्य बन गया।
कैसे हुआ?
ब्रह्मचारी गया उनको ले आया, यह पद्धति है।
किसी प्रकार से उनकी आसक्ति की वस्तु ले आओ!!
सुकृति बनेगी, सुकृति बनने से
तब उनके अंदर में श्रद्धा होगी
भगवान को अन्वेषण करने की, इच्छा भीतर में जिज्ञासा उदित होगी।
इसलिए प्रभुपाद बाक्ष-भिक्षा को बहुत पसंन्द करते थे।
बक्शे में छोड़दिया, ले आओ
आठ आना, चार आना है, जो है ले आओ!!
ले आने से क्या होगा? to that
proportion, to that extend
you will have some sort of service to Sri Krishna
यह इसलिए
प्रधान-प्रधान व्यक्ति जो लोग पैसा कमाके दे सकते थे,
उनको भी भिक्षा, भिक्षुक; भिक्षा करने के लिए
जैसे उनकी आसक्ति की वस्तु आ जाए..!!
तब तो सुकृति यहाँ पर, जो सुकृति हुई, पहले भगवद् भक्त थे
कोई कारण से वो अगस्त्य मुनि के अभिशाप से
हस्ती योनी प्राप्त की
लेकिन उनकी भक्ति नष्ट नहीं होती है।
जितने दूर तक उनका भजन था, वो वहाँ से शुरू हो जाता है।
इसलिए वो जो स्तव करते थे, उनके हृदय में आ गया।
तो अभी वो तो बाद में बोलेंगे, अभी यहाँ पर ही
जो दुर्ज्ञेय प्रभावसंपन्न भगवान,
अत्यंत बलिष्ट जो प्रचण्डवेग से अभी आ रही है।
अभी हमारी मृत्यु हो जाएगी, उसी अवस्था में जो मेरी रक्षा कर सकते हैं
वही परमेश्वर के चरण में मैं शरणागत हो रहा हूँ।
इसलिए वही शिक्षा यहाँ पर दे रहे हैं
कि हम लोग जब परमेश्वर में शरणागत हो जाएँगे,
तब हम लोगों की कोई चिंता नहीं है।
भगवान हमको रक्षा करेंगे, पालन करेंगे इसमें कोई संदेह नहीं है।
एक किसी के घर में मैं जब जाऊँ
जाकर उनकी सेवा करता रहूँ।
उनसे जब कुछ नहीं मांगु, सेवा करता रहूँ
तब कितने दिन वो चुप-चाप रहेंगे वो
अरे!! यह क्या है? इसको नहीं खिलाके मैं कैसे खाऊँ?
दो-तीन दिन के बाद वो ख़राब आदमी भी नहीं कर सकेगा;
ए.. खाओ… खाओ… खाओ… थोड़ा खालो
इनको कपड़ा नहीं देकर, मैं कैसे कपड़ा पहनू?
आदमी नहीं कर सकता है, भगवान कर सकेगें?
यह कैसा विश्वास है?