सुन्दरवन में बाघ सुअर सर्प आदि हिंसक और दुष्ट प्राणियों का वास है। वहाँ अधिक दिन रहने पर उसी प्रकार की हिंसा-मत्सरता के वशीभूत होना बहुत स्वाभाविक है। किन्तु भक्तों का संग प्राप्त कर हिंसक प्राणी भी अहिंसक हो जाते हैं— इसके यथेष्ट प्रमाणादि विभिन्न शास्त्रों में हैं। भक्त का जीवन दूसरे के मंगल के लिए समर्पित होता है— ‘जन्म सार्थक करि कर पर उपकार’ ( अपना जन्म सार्थक करके दूसरे का उपकार करो) — इस बात को भक्त ही समझते हैं। ‘श्रेष्ठ उपकार’ आत्मकल्याण को ही लक्ष्य करता है। इसलिए भक्त कदापि अनुदार नहीं हैं, वे अपनी सामर्थ्य के अनुसार सभी को सेवा का सुयोग प्रदान करते रहते हैं। उस सेवा-सुयोग को प्राप्त करने के लिए व्याकुल रहना होगा।