अवश्य ही। वैष्णव कृष्णके आश्रित हैं—कृष्ण के सेवक हैं। उनके ह्रदय में भगवान् के सेवक अभिमान के अतिरिक्त अन्य कोई अभिमान नहीं होता। वे अकिन्चन होते हैं, इस जगत की कोई भी वस्तु नहीं चाहते। इस जगत की कोई भी वस्तु उन्हें लुब्ध नहीं कर सकती। इस जगत या परजगत में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है, जो कृष्णके चरणकमलों के नखचन्द्रसे अधिक लोभनीय हो। जबतक हम भगवान् की सेवा के प्रति लुब्ध नहीं होते, तबतक समझना होगा कि मोहिनी मायाने बहुत रूपों में हमें ग्रास कर रखा है, हमपर आक्रमण किया है।