“जिससे भलीभांति समय का सदुपयोग हो पाए, उस प्रकार चेष्टा करना। कभी भी आलस्यपूर्वक व्यर्थ समय नष्ट नहीं करना। संसार में रहना है तो 5 लोगों को देखना-सुनना होगा तथा उनका आदर-सम्मान भी करना होगा। यह सब करते हुए भी कुछ समय निकालकर भगवान की नित्य सेवा पूजा तथा ग्रंथ अध्ययन का अभ्यास अवश्य ही रखना। इन सब अनुष्ठानों को ही भक्ति का अंग कहा गया है। 64 प्रकार के भक्ति-अंगों में नवधा भक्ति — “श्रवण, कीर्तन, स्मरण” आदि के अनुशीलन से ही श्रीभगवान में भक्ति एवं प्रेम प्राप्त होता है। यही साधु-शास्त्र-गुरु वाणी है।”
— गुरुदेव श्रीश्रीमद् भक्ति वेदान्त वामन गोस्वामी महाराज जी, सभापति-आचार्य श्री गौड़ीय वेदान्त समिति
पत्र दिनांक : 11/11/1970
श्रीजगन्नाथ मंदिर, बहरमपुर, पश्चिम बंगाल