धन, स्त्री और मान-सम्मान पाने की इच्छा –एक साधू को पहचानने की शास्त्र-वर्णित तीन कसौटियां हैं :
यदि कोई वैष्णव गुरु पथ-भ्रष्ट हो जाए तो यह बहुत दुर्भाग्य की बात है। ऐसा बहुत कम देखा जाता है, लेकिन कभी-कभी ऐसा हो जाता है। आमतौर पर पथ-भ्रष्ट होने के लक्षण तीन अलग-अलग वर्ग में देखे जाते हैं:- कनक, कामिनी, और प्रतिष्ठा अर्थात् पैसा, स्त्री और मान-सम्मान पाने की इच्छा।
सबसे पहला लक्षण,– एक (पथ-भ्रष्ट) गुरु का अपने स्वयं के गुरुजी और शास्त्र-उपदेश के प्रति आकर्षण समाप्त हो जायेगा। फिर, उसने शास्त्र और अपने गुरुजी की वाणी का बखान करते हुए जो पहले कभी कहा था, धीरे-धीरे उसके (आचरण में) वह सब बातें लुप्त हो जाएंगी। उसका उच्च वस्तु के लिए खिंचाव धुंधला पड़ जायेगा।
कनक, कामिनी, प्रतिष्ठा अर्थात् पैसा, स्त्री और मान-सम्मान पाने की इच्छा — यह तीन परीक्षाएं हैं, जिनके द्वारा यह देखा जायेगा कि कोई व्यक्ति साधु है या नहीं, अथवा वह कितनी मात्रा में साधु है।
पहली कसौटी है यह देखना कि वह अपने पूर्व गुरुवर्ग की शिक्षाओं से कितना भटक गया है। यह पता लगाया जाना ज़रूरी है। फिर, वह धन इकट्ठा करने और इसे खर्च न करने की अधिक प्रवृत्ति दिखाएगा। पैसा एकत्रित किया जा सकता है, लेकिन वह वैष्णवों की सेवा और संप्रदाय की सेवा के लिए वितरित किया जाना चाहिए। फिर भी धन इकट्ठा करना — यह पथ-भ्रष्ट होने का दूसरा लक्षण है। तीसरा लक्षण है — महिलाओं की ओर आकर्षण। बेशक, वह धन, स्त्री और अपने शिष्यों से मिल रहे मान-सम्मान के साथ सम्पर्क कर सकता है, यह भी ज़रूरी है, लेकिन ऐसा केवल दिव्य वस्तु की सेवा के उद्देश्य से होना चाहिए, खुद के लिए नहीं। किन्तु यदि हमें यह पता लगे कि वह इन सब चीज़ों को अपने निजी फायदे के लिए उपयोग कर रहा है, न कि संप्रदाय के लिए, तो हमें सावधान होना होगा।
शुरुआत में, हम कुछ छोटी-छोटी समस्याओं को अनदेखा कर सकते हैं। लेकिन अगर हमें पता लगे कि अब वह समस्याएं और बढ़ती जा रही हैं तो हमें सावधानी से स्थिति की समीक्षा करनी होगी। सबसे पहले हम समस्या को अपनी स्थिति के समान व्यक्तियों के पास लेकर जायेंगे। उनसे परामर्श लेकर इस मामले को उच्च व्यक्तियों के पास ले जाया जा सकता है, तथा अन्य विश्वसनीय आचार्यों से परामर्श भी लिया जा सकता है। जब हम यह समझ जाएं कि जो पहले हमारे सामने एक छोटे रूप में दिखाई दिया था, वास्तव में वह सत्य, हानिकारक और बड़ा परिमाण का है तथा हमारे आध्यात्मिक गुरु नीचे गिर रहे हैं, तब हमें खुद को बचाने के लिए अवश्य कार्य करना होगा। हमें उन कदमों को लेने की कोशिश करनी होगी जो हमें उस महामारी गंदगी से बचा सके।
हमें खुद को बचाने की ज़रूर कोशिश करनी होगी। और हमें उन लोगों को बचाने की भी कोशिश करनी होगी जो हमारी तरह ही शोषण का शिकार हो सकते हैं। यह पूरी सच्चाई और ईमानदारी से किया जाना चाहिए। इसकी संभावना है; इसका उल्लेख शास्त्रों में किया गया है और वहां कई व्यवहारिक उदाहरण भी हैं। इसलिए, हमें नींद में आगे बढ़ने की कोशिश नहीं करनी है, बल्कि हमेशा अपनी आँखें खोलकर आगे बढ़ना होगा।
– ‘श्रीगुरु और उनकी कृपा’-ग्रन्थ में परमपूज्यपाद त्रिदण्डिस्वामी श्रील भक्ति रक्षक श्रीधर देव गोस्वामी महाराज जी, संस्थापक-आचार्य विश्वव्यापी श्री सारस्वत गौड़ीय मठ।