Harikatha

सच्चिदानंदविग्रह श्रीगोविन्द कृष्ण ही परमेश्वर हैं। वे अनादि, सबके आदि और समस्त कारणों के कारण हैं।

श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जी ने भी नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को ही सर्वोत्तम आराध्य रूप से निर्देश किया है। जीव की हर प्रकार की इच्छित वस्तु की सर्वोत्तम परिपूर्ति एक मात्र नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की आराधना से ही हो सकती है। किन्तु ये सब बातें हम समझेंगे कैसे? जब तक हमारा (prejudice) स्वार्थ रहेगा, तब तक हम समझ नहीं सकेंगे। भगवद् तत्त्व को समझने के लिये हमें जिस ज्ञान व अधिकार की आवश्यकता है, वह ज्ञान व अधिकार न आने तक सांसारिक बहुत सी योग्यता रहने पर भी हम उसकी (उस भगवद् तत्त्व की) उपलब्धि नहीं कर पायेंगे। अधिकार प्राप्ति के लिये हम किसी भी तरह का साधन करने के लिए तैयार नहीं हैं। दम्भ से उन्हें नहीं जाना जा सकता, कारण, वे unchallengeable truth हैं। उनका न तो कोई कारण है, न कोई उनके समान है, उनसे अधिक होने का तो प्रश्न ही नहीं है। अतः उन भगवान् को जानने के लिये उनकी कृपा के अतिरिक्त किसी अन्य उपाय को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसलिये यदि भगवद्-तत्त्व की उपलब्धि करनी है तो प्रणिपात, परिप्रश्न और सेवा-वृति लेकर तत्त्वदर्शी ज्ञानी गुरु के पास जाना होगा। श्रीमद् भगवद् गीता में भी ऐसा ही निर्देश दिया है:-

“तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।

उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्व दर्शिनः।।”

(श्रीगी. – 4/34)

“तत्त्वज्ञान प्राप्त करने की विधि बताते हुए कह रहे हैं – अर्जुन! ज्ञान का उपदेश करने वाले गुरु के पास जाकर उन्हें दण्डवत् प्रणाम करके जिज्ञासा करो, हे भगवन्! मैं संसार में क्यों फंसा हुआ हूँ? इससे किस प्रकार छुटकारा मिलेगा? इस प्रकार परिप्रश्न (युक्तिसंगत प्रश्न) करने के पश्चात् सेवा पूजा के द्वारा उन्हें प्रसन्न करो।”

श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु: श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु त्रिकाल सत्य, पुराण पुरुष हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु सन् 1486 में श्रीनवद्वीप क्षेत्र के अंतर्गत श्रीधाम मायापुर में अवतरित हुए। श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने नन्दनन्दन श्रीकृष्ण को परमतम् ‌‍‍‌तत्त्व एवं उनके साथ जीव की भेदाभेद सम्बन्ध की बात बताई है। श्रीमन्महाप्रभु जी के अनुसार कलियुग में कृष्ण-प्रीति प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है, श्रीकृष्ण नाम–संकीर्त्तन। जगत् के जीवों को श्रीकृष्ण–भक्ति की शिक्षा देने के लिए स्वयं श्रीकृष्ण ही श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में प्रकट हुए। श्रीभागवत पुराण में, भविष्य पुराण में, महाभारत में, मुण्डकादि उपनिषदों में इस सम्बन्ध में बहुत प्रमाण होने से यह बात सिद्ध होती है।