मां यदि अपनी संतान रूपी ठाकुर जी को शाम 4:00 बजे उबले हुए चावल खिलाकर अर्थात् भोग लगाकर संतुष्ट होती है तो ठाकुर या श्रीमूर्ति, कर भी क्या सकते हैं? सभी तो चौबे ब्राह्मण के नित्य- सेव्य विग्रह- श्रीमदनमोहन जिउ नहीं है? यह ब्राह्मणी की तरह संतान-वत्सला या स्नेहमयी नहीं बनेगी न? वात्सल्य-रस में श्रीविग्रह या श्रीमूर्ति की सेवा करनी चाहिए। श्री भगवान् उस प्रकार से शिवा ग्रहण करेंगे इसलिए ही उन्होंने वह रूप ग्रहण किया या सेवा का सुयोग प्रदान किया। ठाकुर की पूजार्चना- सेवा कर के हम ही धन्य होंगे।