यह पंचभौतिक शरीर जब तक रहेगा, तब तक इसकी स्वस्थता और अस्वस्थता भी चलती रहेगी। जो देह रूपी आधार में वास करता है उस ‘देही’ आत्मा के स्वास्थ्य की उन्नति के लिए चेष्टा करना ही बुद्धिमत्ता का लक्षण है। _”यावत् जीवो निवसति देहे, कुशलं तावत् पृच्छति गेहे”_ जब तक जीव शरीर में वास करता है तब तक ही संसार में उसकी कुशलता पूछी जाती है। किंतु माया में फंसे होने के कारण जीव उस आत्मा की कुशलता को नहीं जान पाता है या समझने में समर्थ नहीं है। जो उस आत्मा के अनुशीलन में रत हैं, वे ही वास्तव में पंडित या तत्वदर्शी हैं।
गुरुदेव श्रीश्रीमद् भक्ति वेदान्त वामन गोस्वामी महाराज जी