स्वर्धुन्यास्तीरभूमौ सरजनिनगरे गौड़भूपाधिपात्राद्
ब्रह्मण्याद्विष्णुभक्तादपि सुपरिचितात् श्रीचिरंजीवसेनात्।
य: श्रीरामेन्दुनामा समजनि परम: श्रीसुनन्दाभिधायां
सः अयं श्रीमान्नराख्ये स हि कविनृपति: सम्यगासीदभिन्न: ॥
-श्री संगीत माधवनाटक
गंगातीर पर स्थित सरजनि नगर में गौड़राज्य के श्रेष्ठ मंत्री द्विजभक्त, विष्णुभक्त और अच्छे जाने माने श्री चिरंजीव नामक पिता से श्री सुनन्दा नाम की माता के गर्भ से श्रीराम चन्द्र नामक जिस महाजन ने जन्म लिया था वे परम रूपवान थे ।नरोत्तम नामक कविनृपति और ये दोनों एक ही आत्मा थे।
“खण्डवासी चिरंजीव सेन एक हय ।
ताँहार पत्नीर नाम सुनन्दा कहाय ॥
दुइ पुत्र हइल तार परम गुणवान ।
ज्येष्ठ रामचन्द्र, कनिष्ठ गोविन्द अभिधान ॥
श्रीनिवासेर शिष्य रामचन्द्र कविराज ।
करुणा मंजरी राम चन्द्रेर सिद्धनाम ॥”
श्रीगौड़ीय वैष्णव अभिधान में उद्धृत वचन
खण्डवासी भक्त श्री चिरंजीव सेन एवं उनकी पत्नी सुनन्दा देवी को अवलंबन कर श्रीराम चन्द्र कविराज वर्धमान जिले के अंतर्गत श्री खण्डग्राम में वैद्यवंश में आविर्भूत हुए थे। श्री गोविन्द कविराज, श्रीराम चन्द्र कविराज के छोटे भाई थे। इनके सिद्ध स्वरूप के बारे में ज्ञात होता है कि – कृष्णलीला में जो करुणामंजरी हैं वही श्रीराम चन्द्र जी के रूप में प्रकट हुई हैं। पिता के अप्रकट होने के पश्चात ये कुछ दिन नाना के घर पर रहे थे तथा बाद में ये मुर्शिदाबाद जिले में अपने छोटे भाई गोविन्द कविराज जी के भजन स्थान तिलिया बुधुरी नामक ग्राम में जाकर रहे, जिस कारण वह स्थान रामचन्द्र जी के श्रीपाट के नाम से प्रसिद्ध हो गया। श्रील भक्ति सिद्धान्त गोस्वामी ठाकुर जी ने केवल मात्र कुमारनगर में ही इनके श्रीपाट का उल्लेख किया है।रामचन्द्र कविराज जी के विवाह के विषय में कुछ न लिखकर श्रील भक्ति सिद्धान्त सरस्वती ठाकुर जी ने उन्हें जन्म से ही संसार वैरागी लिखा है।
श्रीगौड़ीय वैष्णव अभिधान में ऐसा लिखा है कि विवाह करने पर भी रामचन्द्र कविराज जी ने कभी गृहस्थ आश्रम में प्रवेश नहीं किया। श्रीराम चन्द्र को विवाह के वेश में देखकर श्रीनिवासाचार्य प्रभु ने उन्हें विवाह की असारता की बात बताई जो कि रामचन्द्र के हृदय को स्पर्श कर गयी। इसी कारण उन्होंने कभी संसार में प्रवेश नहीं किया। प्रसंग एक ग्रंथ से लिया गया है। ग्रंथ में इस प्रकार विवरण है-
“एई देख विवाहेर एतेक उत्साह ।
अर्थ व्यय करि किने मायार कलह ॥
गले फाँस दिल माया ताहा न बुझिया ।
मंगल आचरे देख कौतुक करिया ॥
अमंगले शुभज्ञान सदाइ करिया ।
उत्सव करे लोक कृतार्थ मानिया ॥”
श्रीनिवास आचार्य प्रभु ने स्नेह से श्रीराम चन्द्र जी को दीक्षा मंत्र प्रदान कर उन्हें अपने सेवक रूप में स्वीकार किया था। श्रीराम चन्द्र जी की गुरु भक्ति अतुलनीय थी। श्रील गुरुदेव की आज्ञा वे बिना विचार किए ही पालन करते थे।विष्णुपूर के राजा वीरहम्भीर श्रीनिवास आचार्य के शिष्य बन गए थे, किन्तु रामचन्द्र कविराज शिक्षा गुरु रूप से उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे। श्रीराम चन्द्र कविराज जिस समय वृन्दावन में थे उस समय उनको श्रीजीव गोस्वामी आदि वैष्णवों का संग और उनकी कृपा प्रार्थना करने का सौभाग्य मिला था। उनके अपूर्व कवित्व को सुनकर वैष्णवों को परितृप्ति होती थी। श्रीलजीव गोस्वामी जी ने श्रीराम चन्द्र जी को कविराज की उपाधि प्रदान की थी। ये आठ कविराजो में से एक हैं। श्रील नरोत्तम ठाकुर जी के प्रचार और भजन के ये प्रियतम साथी थे।
“श्रीपरमानन्द भट्टाचार्य प्रेमराशि ।
श्रीजीव गोस्वामी आदि वृन्दावन वासी ॥
सबे ताँर’ कृत काव्य शुनि ताँर मुखे ।
कविराज ख्याति सबे दिल महासुखे ॥
रामचन्द्र कविराज सर्वगुणमय ।
याँर’ अभिन्नात्मा नरोत्तम महाशय ॥”
-भक्तिरत्नाकर 1/267-69
“कंसारिसेन, राम सेन, रामचन्द्र कविराज ।
गोविन्द, श्रीरंग, मुकुन्द-तिन कविराज ॥
-चै॰च॰आ 11/51
इनके द्वारा रचित ग्रंथावली में से ‘स्मरण चमत्कार’,‘स्मरणदर्पण’,‘सिद्धान्त चंद्रिका’,‘श्रीनिवासचार्य जी का जीवन चरित्र’ विशेष उल्लेखनीय है।
ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जो इनकी अनिंद्यसुंदर दिव्यकान्ति के दर्शन कर आकर्षित नहीं होता था। श्री नरहरि चक्रवर्ती जी द्वारा रचित श्री भक्ति रत्नाकर ग्रंथ की नवम तरंग में 178 न॰ पयार में इस विषय का अति सुंदर रूप से वर्णन हुआ है। इस वर्णन में ऐसा भी वर्णन है कि जब श्री जीव गोस्वामी पाद जी रामचन्द्र जी को श्रीराधा दामोदर जी के दर्शन के लिए लाये तो उनके दर्शनों से और श्रील रूप गोस्वामी जी की समाधि का दर्शन करने से श्रीरामचन्द्र जी में जो प्रेम के विकार प्रकट हुए थे वे अद्भुत थे।उन्होंने वृन्दावन में श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी, श्री लोकनाथ गोस्वामी और श्री भूगर्भ गोस्वामी जी की कृपा प्राप्त की थी। आरिटग्राम में श्रीराधाकुण्डऔर श्यामकुण्ड में स्नान करने के पश्चात जब रामचन्द्र कविराज जी ने श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी जी को दण्डवत प्रणाम किया था तो रघुनाथ दास गोस्वामी जी ने स्नेह से उन्हें आलिंगन कर लिया और प्रेमाविष्ट हो गए थे ।
यौ शश्वद्भगवदपरायणपरौ संसार –परायणौ
सम्यक् सात्वततन्त्रवादपरमौ नि:शेषसिद्धान्तगो
शश्वद्भक्तिरस प्रदानरसिकौ पाषंड हृन्मंडला-
वन्योन्यप्रियताभरेण युगलीभूताविमौ तौ नुम: ॥
– श्री संगीत माधव नाटक
जो हमेशा भगवद् भक्ति परायण जनों को प्रिय रूप से स्वीकार करते हैं, जो संसारोत्तरणकारी और सम्यक रूप से सनातन शास्त्रवाद में निपुण हैं, जो हर प्रकार से शास्त्रों में पारंगत हैं तथा जो भक्ति रस प्रदान करने में परम उदार हैं और पाखंडियों के हृदय को भी जय करने वाले हैं , जो परस्पर प्रेम अधिक होने के कारण युगल रूप से प्रतिभात होते हैं उन्हीं श्रीरामचन्द्र और श्री नरोत्तम प्रभु को हम नमस्कार करते हैं ।
श्री नरोत्तम ठाकुर जी ने स्वरचित “प्रार्थना” गीति में रामचन्द्र कविराज जी के संग की मांग की है।
दया कर श्री आचार्य प्रभु श्रीनिवास ।
रामचन्द्र संग मांगे नरोत्तम दास ॥
माघी कृष्णा– तृतीया तिथि को श्रील रामचन्द्र कविराज जी का तिरोभाव हुआ । श्रीनिवासचार्य प्रभु जी के अंतर्ध्यान के पश्चात श्रीरामचन्द्र कविराज वृन्दावन में अप्रकट हुए ।