Srila Bhakti Pramode Puri

श्रील गुरुदेव द्वारा पुष्पांजलि

जो व्यक्ति भक्त नही हैं वह व्यास पूजा का पालन नहीं कर सकता है। हृदय से त्रुटिहीन सेवा भगवान एवं गुरूदेव के प्रति एक शुद्ध पुष्पांजलि है।”

श्रील् भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर लिखते हैं:

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प्रकृत गुरु

श्रील भक्तिप्रमोद पुरी गोस्वामी ठाकुर की १२६वीं व्यासपूजा के उपलक्ष्य में।
वर्त्तमान समय में ‘गुरु’ शब्द एक फैशन बन गया है। हम देख सकते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों के कई लोग स्वयं को गुरु कहलाने का प्रयत्न करते हैं। जैसे सिनेमा के क्षेत्र में, लोग कुछ प्रसिद्ध कलाकारों को गुरु कहते हैं। खेल जगत् में एक अच्छे खिलाड़ी को भी गुरु कहा जाता है। राजनीति के क्षेत्र में भी लोग इस शब्द का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार शैक्षिक जगत् में भी ‘गुरु’ शब्द का प्रयोग होता है। आजकल अध्यात्म के क्षेत्र में भी जो लोक-प्रसिद्ध हो जाते हैं वे भी स्वयं को सेलिब्रिटी गुरु के रूप में मनवाने के लिये लालायित हैं। किन्तु, ‘गुरु’ का अर्थ होता है गम्भीर; हिमालय पर्वत से भी गम्भीर। 

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