श्रीगोपीनाथ बड़दलई की श्रील महाराज के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा व प्रीति होने के कारण, श्रील महाराज जी ने सोचा कि यदि अब इन्हें अप्रिय सत्य बात कही जाये तो क्या ये सहन कर पायेंगे? कई बातें सत्य होने से भी वह सभी को, सभी समय नहीं कही जा सकती, इसलिए विद्वान् व्यक्ति, ग्रहण करने का अधिकारी देखकर, उसके अधिकार के अनुसार ही उसे उपदेश देते हैं।
Read Downloadयह सन् १९३० की बात है, जब श्रील महाराज जी (श्री श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज) के गुरुदेव श्रील प्रभुपाद प्रकट थे। श्रील प्रभुपाद के प्रकट काल में कलकत्ता के बाग-बाजार स्थित श्रीगौड़ीय मठ में, श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में विशाल धर्म-सम्मेलन होता था, जो कि एक महीने तक चलता था। इस सम्मेलन में प्रतिदिन कोई न कोई विशेष व्यक्ति सभापति का आसन ग्रहण करता था।
Read Download“श्रीचैतन्यदेव जी ने हमें जो दिया है उनमें से एक विशिष्ट देन है- श्रीनाम-संकीर्त्तन। 64 प्रकार के साधन अंगों में जो पाँच मुख्य साधन हैं, वे हैं- साधुसंग, नामकीर्त्तन, भागवत-श्रवण, मथुरावास और श्रद्धा से श्रीमूर्त्ति का सेवन। इन पाँच मुख्य भक्ति अंगों के साधनों में श्रीनाम-संकीर्त्तन सर्वोत्तम है।”
Read Download“श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जी द्वारा प्रचारित प्रेम-भक्ति अनुशीलन के द्वारा विश्व-वासियों में यथार्थ एकता व प्रीति भरा सम्बन्ध स्थापित हो सकता है। अहिंसा की अपेक्षा प्रेम अधिक शक्तिशाली है। हिंसा से निवृत्ति को अहिंसा कहा जाता है। प्रेम से केवल मात्र हिंसा या दूसरों के अनिष्ट से निवृत्ति को ही नहीं समझा जाता, बल्कि इसमें दूसरों का हित करने या दूसरों को सुख प्रदान करने की चेष्टा भी विद्यमान है।
Read Downloadश्री चैतन्य वाणी का जिनके कर्ण-कुहरों में प्रवेश हुआ, उनका ही ह्रदय मार्जित हुआ है। श्रीचैतन्य वाणी ने केवल मात्र उनके हृदयों का मार्जन कर पुनः-पुनः जन्म-मृत्यु के हाथों से उनका उद्धार ही नहीं किया बल्कि उन्हें वास्तव मंगल-स्वरुप, श्रीगौर-कृष्ण के सुस्निग्ध कृपा लोक में प्रकाशित कराते हुए, उनके पास स्व-स्वरुप (जीव स्वरुप), माया का स्वरूप तथा श्रीभगवान् का स्वरूप प्रकशित कर, उनके ह्रदय में आनन्द समुद्र-वर्धन व कदम-कदम पर पूर्णामृत का आस्वादन कराते हुए उन्हें उन्नतम, सुनिर्मल आनन्द सागर में निमज्जन का सौभाग्य प्रदान किया है।
Read Downloadरविवार, 1 नवम्बर 1968 को श्रीनवद्वीप धाम के अंतर्गत पाणिहाटि में श्रीगौरांग महाप्रभु जी की शुभविजय तिथि पर राघव-भवन में विराट धर्मसभा हुई जिसमे श्रील गुरुदेव जी पौरोहित्य-पद पर विराजमान हुए। इस सभा में अध्यापक, श्रीसुरेन्द्र नाथ दास जी ने अपने अभिभाषण में विशेषभाव से श्रीमन् नित्यानन्द प्रभु एवं श्रीमन् महाप्रभु जी की करुणा की बात कही।
Read Download[श्रील गुरुदेव ने पंजाब में मायावादियों के दुर्भेद्य दुर्ग में लम्बे समय रहकर विपुल भाव से शुद्ध-भक्ति प्रचार किया। श्रील गुरुदेव जी के अलौकिक व्यक्तित्त्व के प्रभाव से पंजाब में मायावाद की मजबूत नींव हिल गयी। इससे सारे पंजाब में भक्ति की एक अद्भुत लहर फैल गयी। बहुत से व्यक्ति मायावादी विचारों को परित्याग करके, शुद्ध-भक्ति सिद्धांत से आकृष्ट होकर, श्रील गुरुदेव जी का चरणाश्रय ग्रहण करते हुये, गौर विहित-भजन में व्रती हुए। आपकी महापुरुषोचित्त बाहरी आकृति दर्शन करके व आपके माधुर्यपूर्ण व्यवहार से, मायवादी लोग, ये समझते हुए भी कि उनके विचारों का खण्डन हो रहा है, तथापि आपको आमन्त्रण करके आपके श्रीमुख से वीर्यवती हरिकथा श्रवण करके तृप्ति लाभ करते थे।]
Read Downloadश्रीमन्महाप्रभु जी के अनुसार कलियुग में कृष्ण-प्रीति प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है, श्रीकृष्ण नाम–संकीर्त्तन। जगत् के जीवों को श्रीकृष्ण–भक्ति की शिक्षा देने के लिए स्वयं श्रीकृष्ण ही श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में प्रकट हुए। श्रीभागवत पुराण में, भविष्य पुराण में, महाभारत में, मुण्डकादि उपनिषदों में इस सम्बन्ध में बहुत प्रमाण होने से यह बात सिद्ध होती है।
Read Download[श्रील गुरुदेव जी ने 2 मार्च 1961, 18 फाल्गुन की गौर पूर्णिमा तिथि के दिन, ‘श्री चैतन्य वाणी’ नामक, एकमात्र पारमार्थिक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया। इसी पत्रिका के पंचम वर्ष में प्रवेश करने पर उनकी वन्दना करते हुए, मठाश्रित सेवकों के आत्यन्तिक मंगल के लिए, परमाराध्य श्रील गुरु महाराज जी ने एक उपदेशावली प्रेषित की। ये उपदेशावली निम्न प्रकार से है।]
Read Download