जब गुरु महाराज ने श्रील प्रभुपाद का दीक्षा आदि लेकर आश्रय तो ग्रहण किया था किन्तु मठवास आरम्भ नहीं किया था, तब वे कोलकाता में एक बड़े घर को किराए पर लेकर वहीं रहते थे। उनके पूर्व- आश्रम के किसी सम्बन्धी व्यक्ति ने, जो एक चित्रकार थे, उन्हें श्रीमन्महाप्रभु का एक तैल-चित्र बनाकर भेंट में दिया था, जिसे उन्होंने अपने किराए के घर के हॉल की दीवार पर टाँग दिया था। उसी तैल चित्र के समक्ष बैठकर वे अपने गुरुभ्राता श्रीनारायण मुखोपाध्याय तथा बन्धु श्रीहरिदास के साथ कीर्त्तन करते थे।
Read Downloadकभी-कभी जब गुरु महाराज किसी बालक को उसके माता अथवा पिता के साथ में देखते, तो माता-पिता को शिक्षा देने के उद्देश्य से अपने बाल्यकाल के विषय में बताते, “मेरे पिता श्रीनिशिकान्त देवशर्मा बन्धोपाध्याय मेरी चार वर्ष की आयु होते-न-होते ही परलोक सिधार गए। मेरी माता श्रीमती शैवालिनी देवी भक्तिमती तथा साधु-सेवा परायण थी। मेरे पिता के परलोक गमन के पश्चात् वे अपने भाइयों के घर पर रहकर ही मेरा, अपनी एक मात्र सन्तान का पालन पोषण करने लगी।
Read Download“आज के दिन, अपनी जन्मतिथि के अवसर पर श्रीगुरु की आराधना करना मेरा कर्त्तव्य है। मेरे लिए, श्रीगुरु चार रूपों में प्रकाशित होते हैं। पहले वह हैं जो मेरे अज्ञान को नष्ट करते हैं। भगवान् असीमित ज्ञान के स्रोत हैं, अतएव वे मूल गुरु तत्त्व हैं एवं इसीलिए चैत्यगुरु के रूप में प्रकट होते हैं। अतएव आज उनकी आराधना करना मेरा कर्त्तव्य है।
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