श्रील सुन्दरानन्द ठाकुर श्री कृष्ण लीला में द्वादश गोपालों में से एक हैं।‘पुरा सुदाम- नामासीद् अद्य ठक्कुर:।’
–गौ. ग. 127
“प्रेमरस समुद्र सुन्दरानन्द नाम ।
नित्यानन्द स्वरूपेर पार्षद प्रधान ॥”
इनका श्रीपाट यशोहर ज़िलेके अंतर्गत महेशपुर ग्राम में है जो कि माजदिया रेल्वे स्टेशन से 14 मील पूर्व की ओर अवस्थित है। पास में ही वेत्रवती नदी प्रवाहित होती है। इस स्थान पर प्राचीन चिह्न-स्वरूप एकमात्र सुन्दरानन्द ठाकुर जी का जन्मभिटा दिखता है। श्री सुन्दरानन्द ठाकुर नित्यानन्द शाखा में गिने जाते हैं।
“सुन्दरानन्द नित्यानन्देर शाखा, भृत्यमर्म।
यार संगे नित्यानन्द करे व्रजनर्म ॥”
चै. च. आ. 11/23
इनके द्वारा सेवित विग्रह ‘श्रीश्रीराधावल्लभ’ और ‘श्रीश्रीराधारमण’ हैं। गोस्वामी गणों के द्वारा ‘श्रीश्रीराधावल्लभ’ और ‘श्रीश्रीराधारमण’ जी के मूल विग्रह सैदाबाद में ले जाने के बाद महेशपुर में दारुमय (लकड़ी के) विग्रह प्रतिष्ठित किए गए थे। श्रील सुन्दरानन्द ठाकुर आकुमार ब्रह्मचारी थे, इसलिए इनका वंश नहीं है। यही कारण है कि देव मंदिर का स्थायी सेवक-शिष्य-वंश वर्तमान में वहाँ पर है। वीरभूम ज़िले में मंगलडिहि ग्राम में जो हैं, वे सुन्दरानन्द ठाकुर जी के रिश्तेदारों के वंशज हैं।‘वैष्णव-वंदना’ में सुन्दरानन्द ठाकुर जी की महिमा इस प्रकार वर्णित है।
“सुन्दरानन्द ठाकुर वंदिव बड़ आशे ।
फुटाल कदम्बफूल जम्बीरे गाछे ॥”
नित्यानन्द पार्षद श्रील सुन्दरानन्द ठाकुर अलौकिक शक्ति सम्पन्न थे ।इन्होंने जंबीर के वृक्ष पर कदंब के फूल अंकुरित कर श्रीराधारमण जी की सेवा की थी। एक बार सुन्दरानन्द ठाकुर जी गाड़ प्रेम के आवेश में नदी के जल में कूदकर एक मगरमच्छ को खींच लाये थे। नित्यानन्द प्रभु जी जिस प्रकार पतितपावन हैं, उनके पार्षद भी उसी प्रकार पतितपावनत्व की शक्ति रखते हैं। कार्तिक पूर्णिमा तिथि को सुन्दरानन्द ठाकुर जी ने तिरोधान लीला की ।